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    बाबू जगजीवन राम जी के बारेमे

    स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग
    जगजीवन राम उस समय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले दल में शामिल हुए, जब
    अंग्रेज़ अपनी पूरी ताक़त के साथ आज़ादी के सपने को हमेशा के लिए कुचल देना चाहते थे। पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अंग्रेजों ने अपनी सारी ताक़त झोंक दी थी। मुस्लिम लीग की कमान जिन्ना के हाथ में थी और वे अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली बने थे।

    गाँधी जी ने साम्राज्यवादी अंग्रेजों के इरादे को भांप लिया था कि स्वतंत्रता आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए अंग्रेज़ों की फूट डालो, राज करो नीति को बाबूजी ने समझा। हिन्दू मुस्लिम विभाजन कर अंग्रेज़ों ने दलितों और सवर्णों के मध्य खाई बनाने प्रारम्भ की, जिसमें वह सफल भी हुए और दलितों के लिए 'निर्वाचन मंडल', 'मतांतरण' और 'अछूतिस्तान' की बातें होने लगीं। महात्मा गांधी ने इसके दूरगामी परिणामों को समझा और आमरण अनशन पर बैठ गए। यह राष्ट्रीय संकट का समय था। इस समय राष्ट्रवादी बाबूजी ज्योति स्तंभ बनकर उभरे। उन्होंने दलितों के सामूहिक धर्म-परिवर्तन को रोका और उन्हें स्वतंत्रता की मुख्यधारा से जोड़ने में राजनीतिक कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया। इस घटना के बाद बाबूजी दलितों के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। वह बापू के विश्वसनीय और प्रिय पात्र बने और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए।

    अंग्रेज़ों का विरोध
    1936 में 28 साल की उम्र में ही उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य चुना गया था। 'गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट' 1935 के अंतर्गत 1937 में अंग्रेज़ों ने बिहार में कांग्रेस को हराने के लिए यूनुस के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनवाने का निष्फल प्रयत्न किया। इस चुनाव में बाबूजी निर्विरोध निर्वाचित हुए और उनके 'भारतीय दलित वर्ग संघ' के 14 सदस्य भी जीते। उनके समर्थन के बिना वहां कोई सरकार नहीं बन सकती थी। यूनुस ने बाबूजी को मनचाहा मंत्री पद और अन्य प्रलोभन दिये, किंतु बाबूजी ने उस प्रस्ताव को तुरंत ठुकरा दिया। यह देखकर गांधी जी ने 'पत्रिका हरिजन' में इस पर टिप्पणी करते हुए इसे देशवासियों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बताया। उसके बाद बिहार में कांग्रेस की सरकार में वह मंत्री बनें किन्तु कुछ समय में ही अंग्रेज़ सरकार की लापरवाही के कारण महात्मा जी के कहने पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे रहे। मुंबई में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया तो जगजीवन राम सबसे आगे थे। योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आन्दोलन तेज करना था लेकिन दस दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिए गये।

    राजनीति में सफलता
    बाबूजी के प्रयत्नों से गांव - गांव तक डाक और तारघरों की व्यवस्था का भी विस्तार हुआ। रेलमंत्री के रूप में बाबूजी ने देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिए वाराणसी में डीजल इंजन कारख़ाना, पैरम्बूर में 'सवारी डिब्बा कारख़ाना' और बिहार के जमालपुर में 'माल डिब्बा कारख़ाना' की स्थापना की।
    सन 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद वह सत्ता की उच्च सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे। पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि श्रम, कृषि, संचार, रेलवे या रक्षा, जो भी मंत्रालय उन्हें दिया गया उन्होंने उसका प्रशासनिक दक्षता से संचालन किया और उसमें सदैव सफ़ल रहे। किसी भी मंत्रालय में समस्या का समाधान बड़ी कुशलता से किया करते थे। उन्होंने किसी भी मंत्रालय से कभी इस्तीफ़ा नहीं दिया और सभी मंत्रालयों का कार्यकाल पूरा किया।

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