Sangh : जो संघी नेहरू को मुसलमान बताते हैं उनके लिए विशेष
जो संघी नेहरू को मुसलमान बताते हैं उनके लिए विशेष
सोसल मिडिया पर काग्रेस के खिलाफ कितना कुचक्र रचा है पता नहीं, ये संघी सिर्फ हिन्दू मुस्लिम को ले कर ही राजनीती करते है, पूरा गूगल भर दिया है,
फ़िलहाल PM इंडिया के हिसाब से यहाँ क्लिक करे
wikipedia कुछ यु कहता है क्लिक करे
लेकिन ये कट्टर हिन्दू के बात के लिए यहाँ क्लीक करे
पढ़ें कहानी #सैयद_फकरुदीन_मोदी की
बात १९ वी शताब्दी के मध्य १८५७ की है, जब पुरे देश में क्रान्ति का बिगुल बजा था। उस समय गुजरात भी इससे अछूता नहीं था. जहां राष्ट्र को विदेशियों के हाथ से छुड़ाने के लिए लोग अपने प्राण भी न्योछावर कर रहे थे, ऐसे भी कई लोग थे जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए जासूसी कर के भारी इनाम पा
रहे थे।
ऐसा ही एक परिवार था ,सैयद फकरुद्दीन मोदी का, जो तकरीबन ३ पीढ़ी पहले बिहार से आकर गुजरात के वडनगर के पास आकर बस गया था।
सैयद फकरुद्दीन मोदी की ३ बीवियां थी। पहली बीवी से कोई संतान नहीं थी, दूसरी से ३ बेटियां और तीसरी से २ बेटे ४ बेटियां। बेटों के नाम फारुख मोदी और मोईनुद्दीन मोदी था।
ये परिवार वडनगर से तकरीबन ४० किलोमीटर दूर रहकर एक किराने की दूकान चलाता था। नज़दीक ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की छावनी भी थी, जहां पर ये जाकर किसानों द्वारा जमा किया गया लगान अँगरेज़ अफसरों से सस्ते दाम में खरीद कर उसे जाकर ऊँचे दामों में बेचकर मुनाफ़ा कमाते थे।
अँगरेज़ अफसर एंड्रयू साइडबॉटम इस परिवार पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान था क्युकी सैयद फकरुद्दीन की
तीसरी बीवी उसकी "विशेष सेवा" करती थी। मोईनुद्दीन मोदी का रंग अपने अन्य परिवार के सदस्यों के विपरीत काफी गोरा था। जबकि अन्य सदस्य गहरे काले रंग के थे.
सैयद फकरुद्दीन मोदी की ३ बीवियां थी। पहली बीवी से कोई संतान नहीं थी, दूसरी से ३ बेटियां और तीसरी से २ बेटे ४ बेटियां। बेटों के नाम फारुख मोदी और मोईनुद्दीन मोदी था।
ये परिवार वडनगर से तकरीबन ४० किलोमीटर दूर रहकर एक किराने की दूकान चलाता था। नज़दीक ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की छावनी भी थी, जहां पर ये जाकर किसानों द्वारा जमा किया गया लगान अँगरेज़ अफसरों से सस्ते दाम में खरीद कर उसे जाकर ऊँचे दामों में बेचकर मुनाफ़ा कमाते थे।
अँगरेज़ अफसर एंड्रयू साइडबॉटम इस परिवार पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान था क्युकी सैयद फकरुद्दीन की
तीसरी बीवी उसकी "विशेष सेवा" करती थी। मोईनुद्दीन मोदी का रंग अपने अन्य परिवार के सदस्यों के विपरीत काफी गोरा था। जबकि अन्य सदस्य गहरे काले रंग के थे.
लोग कई बातें बनाते लेकिन सामने कोई बोल नहीं पाता। यहां तक कि दोनों बच्चों फारुख और मोईनुद्दीन के मित्र भी हमेश चिढ़ाते ' एक भाई गोरा, एक भाई काला" खैर, १८५७ की क्रान्ति के दौरान ३ आंदोलनकारी घायल अवस्था में इस परिवार के घर पहुंचे और मदद मांगी, इन्होने उन्हें अपने घर के गोदाम में पनाह दे दी।
धीरे धीरे ये तीनों क्रांतिकारी ठीक हो गए , लेकिन इसमें से एक का झुकाव तीसरी बीवी सुल्ताना जो एंड्रयू की भी सेवा करती थी, से होने लगा।
एक दिन मोईनुद्दीन ने दोनों को हंसी मजाक करते देख लिया। उसे बहुत कष्ट हुआ।अबतक फारुख और मोईनुद्दीन समझदार हो चुके थे, मोईनुद्दीन ने यह बात गोरे अफसर एंड्रयू को बता दी.
एंड्रयू तुरंत अपनी टुकड़ी के साथ पहुँच कर पुरे परिवार को गिरफ्तार कर लिया , सभी को क्रांतिकारियों सहित तोप के मुंह से बंधवाकर भरे बाज़ार में उड़वा दिया. उसने ना जाने क्यों युवा मोईनुद्दीन को बक्श दिया, बल्कि ढेर सारा इनाम भी दिया।
किन्तु मोईनुद्दीन आम जनता की नज़र में आ गया , उसे बचाने के लिए एंड्रयू ने उसे वडनगर भेज दिया, एक दूकान खुलवा के दे दी, और उसका नाम बदल कर झवरचन्द रख दिया , किन्तु मोदी सरनेम नहीं हटाया , जिससे वो तेल का व्यापर कर सके, उसी झवरचन्द के बाद में मूलचंद नामक संतान हुई.
आगे सब जानते हैं।