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    स्वतंत्र भारत के शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आज़ाद

    वह स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे और उन्होंने ग्यारह वर्षो तक राष्ट्र की नीति का मार्गदर्शन किया। भारत के पहले शिक्षा मंत्री बनने पर उन्होंने नि:शुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में अत्यधिक के साथ कार्य किया। मौलाना आज़ाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' अर्थात 'आई.आई.टी. और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय है।

    वे संपूर्ण भारत में 10+2+3 की समान शिक्षा संरचना के पक्षधर रहे। यदि मौलाना अबुल कलाम आज ज़िंदा होते तो वे नि:शुल्क शिक्षा के अधिकार विधेयक को संसद की स्वीकृति के लिए दी जाने वाली मंत्रिमंडलीय मंजूरी को देखकर बेहद प्रसन्न होते। शिक्षा का अधिकार विधेयक के अंतर्गत नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा एक मौलिक अधिकार है।

    उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।
    उन्होंने संगीत नाटक अकादमी (1953),
    साहित्य अकादमी (1954) और
    ललित कला अकादमी (1954) की स्थापना की।
    1950 से पहले उनके द्वारा 'भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद' की स्थापना की गई।
    केन्द्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केन्द्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की।
    1956 में उन्होंने अनुदानों के वितरण और भारतीय विश्वविद्यालयों में मानकों के अनुरक्षण के लिए संसद के एक अधिनियम के द्वारा 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' (यूजीसी) की स्थापना की।
    तकनीकी शिक्षा के मामले में, 1951 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, खड़गपुर की स्थापना की गई और इसके बाद शृंखलाबध्द रूप में मुम्बई, चेन्नई, कानपुर और दिल्ली में आई.आई.टी. की स्थापना की गई।
    स्कूल ऑफ प्लानिंग और वास्तुकला विद्यालय की स्थापना दिल्ली में 1955 में हुई।
    मृत्यु
    22 फ़रवरी सन् 1958 को हमारे राष्ट्रीय नेता का निधन हो गया। भिन्न-भिन्न-धार्मिक नेता, लेखक, पत्रकार, कवि, व्याख्याता, राजनीति और प्रशासन में काम करने वाले भारत के इस महान सपूत को अपने-अपने ढंग से याद करते रहेंगे। इन सबसे बढ़कर मौलाना आज़ाद धार्मिक वृत्ति के व्यक्ति होते हुए भी सही अर्थों में भारत की धर्मनिरपेक्ष सभ्यता के प्रतिनिधि थे।

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