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    पं. मोतीलाल नेहरू के संतान और राजनितिक कैरियर

    संतान
    मोतीलाल के घर जवाहरलाल नेहरू 1889 में पैदा हुए। बाद में उनके दो पुत्रियां सरूप, जो बाद में विजयलक्ष्मी पंडित के नाम से विख्यात हुई और कृष्णा, जो बाद में कृष्णाहठी सिंह के नाम से जानी गयीं, पैदा हुई।.


    राजनीतिक कैरियर
    पंडित मोतीलाल की क़ानून पर पकड़ काफ़ी मज़बूत थी। इसी कारण से साइमन कमीशन के विरोध में सर्वदलीय सम्मेलन ने 1927 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जिसे भारत का संविधान बनाने का दायित्व सौंपा गया। इस समिति की रिपोर्ट को 'नेहरू रिपोर्ट' के नाम से जाना जाता है। इसके बाद मोतीलाल ने इलाहाबच्द उच्च न्यायालय आकर वकालत प्रारम्भ कर दी। मोतीलाल 1910 में संयुक्त प्रांत, वर्तमान में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। अमृतसर में 1919 के जलियांवाला बाग गोलीकांड के बाद उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी वकालत छोड़ दी। वह 1919 और 1920 में दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने 'देशबंधु चितरंजन दास' के साथ 1923 में 'स्वराज पार्टी' का गठन किया। इस पार्टी के जरिए वह 'सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली' पहुंचे और बाद में वह विपक्ष के नेता बने। असेम्बली में मोतीलाल ने अपने क़ानूनी ज्ञान के कारण सरकार के कई क़ानूनों की जमकर आलोचना की। मोतीलाल नेहरू ने आज़ादी के आंदोलन में भारतीय लोगों के पक्ष को सामने रखने के लिए 'इंडिपेंडेट अख़बार' भी चलाया।
    विजयलक्ष्मी पंडित ने अपनी आत्मकथा 'द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस' में बचपन की यादों को ताजा करते हुए लिखा है कि 'उनके पिता पूरी तरह से पश्चिमी विचारों और रहन-सहन के कायल थे। उस दौर में उन्होंने अपने सभी बच्चों को अंग्रेज़ी शिक्षा दिलवाई।' विजयलक्ष्मी पंडित के अनुसार 'उस दौर में मोतीलाल नेहरू आनंद भवन में भव्य पार्टियां दिया करते थे जिनमें देश के नामी गिरामी लोग और अंग्रेज़ अधिकारी शामिल हुआ करते थे। लेकिन बाद में इन्हीं मोतीलाल के जीवन में महात्मा गांधी से मिलने के बाद आमूलचूल परिवर्तन आ गया और यहां तक कि उनका बिछौना ज़मीन पर लगने लगा।'

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