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    गांधी जी को मिली थी गोखले से प्रेरणा

    'केसरी' और 'मराठा' अख़बारों के माध्यम से तिलक जहाँ अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध लड़ रहे थे, वहीं 'सुधारक' को
    गोखले ने अपनी लड़ाई का माध्यम बनाया हुआ था। 'केसरी' की अपेक्षा 'सुधारक' का रूप आक्रामक था। सैनिकों द्वारा बलात्कार का शिकार हुई दो महिलाओं ने जब आत्महत्या कर ली, तो 'सुधारक' ने भारतीयों को कड़ी भाषा में धिक्कारा था- तुम्हें धिक्कार है, जो अपनी माता-बहनों पर होता हुआ अत्याचार चुप्पी साधकर देख रहे हो। इतने निष्क्रिय भाव से तो पशु भी अत्याचार सहन नहीं करते।
    गाँधी जी गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। आपके परामर्श पर ही उन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग लेने से पूर्व एक वर्ष तक देश में घूमकर स्थिति का अध्ययन करने का निश्चय किया था। साबरमती आश्रम की स्थापना के लिए गोखले ने गाँधी जी को आर्थिक सहायता दी। गोखले सिर्फ गांधी जी के ही नहीं बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना के भी राजनीतिक गुरु थे। गांधी जी को अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की प्रेरणा गोखले से ही मिली थी। गोखले की प्रेरणा से ही गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया। सन् 1912 में गांधी के आमंत्रण पर वह खुद भी दक्षिण अफ्रीका गए और वहां जारी रंगभेद की निन्दा की। जन नेता कहे जाने वाले गोखले नरमपंथी सुधारवादी थे। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के साथ ही देश में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया। वह जीवनभर हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे। मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना था। यह बात अलग है कि बाद में जिन्ना गोखले के आदर्शों पर क़ायम नहीं रह पाए और देश के बंटवारे के नाम पर भारी ख़ूनख़राबा कराया।

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