पंडित नेहरू के शिष्य थे डॉ लोहिया!!
डॉ. राम मनोहर लोहिया शुरू से लेकर आज़ादी मिलने तक जवाहर लाल नेहरू के बहुत करीबी व्यक्ति थे।
भारत की विदेश नीति को मूल रूप से जवाहर लाल नेहरू ने डिजाइन किया था। भारत के समकालीन इतिहास का हर विद्यार्थी जनता है कि विदेश नीति की जवाहर लाल की जो भी सोच थी उसमें डॉ. राम मनोहर लोहिया का बहुत बड़ा योगदान था। जवाहर लाल नेहरू ने हर मंच पर लोहिया की तारीफ़ की और उनकी राय को महत्व दिया।
हमारी पीढ़ी के लोगों के लिए यह सोच पाना बहुत मुश्किल है कि डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसा स्वतंत्रचेता व्यक्ति किसी का शिष्य हो सकता है। लेकिन जब डॉ. लोहिया के सबसे प्रभावशाली अनुयायी ने अपनी एक अहम किताब में लिखा है तो उसे मान लेने में कोई संकोच नहीं किया जाना चाहिए। जिस लेख का हवाला यहाँ लिया जा रहा है कि वह मधु लिमये की किताब,” म्यूज़िंग्स ऑन करेंट प्राब्लम्स एंड पास्ट इवेंट्स ( 1988) ” में छपा हुआ है।
मधु जी ने लिखा है कि डॉ. लोहिया को कांग्रेस में शामिल करने का श्रेय सेठ जमनालाल बजाज को जाता है जो डॉ. लोहिया के पिता जी के परिचित थे। जमनालाल बजाज उन दिनों कांग्रेस के कोषाध्यक्ष भी थे। उन्होंने ही डॉ. लोहिया को महात्मा गांधी से मिलवाया था और महात्मा जी ने जवाहर लाल नेहरू से राम मनोहर लोहिया को लखनऊ कांग्रेस के समय 1936 में मिलवाया।। महात्मा गांधी के सुझाव पर उस साल जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया था। वे ताज़ा ताज़ा जेल से छूट कर आये थे। लोहिया से उनकी मुलाक़ात कांग्रेस अध्यक्ष के टेंट में ही हुयी। उन्होंने डॉ. लोहिया को समाजवादी चिंतन धारा का उभरता हुआ सितारा कह कर संबोधित किया। उन्होंने पूछा कि क्या लोहिया ने उनके अध्यक्षीय भाषण को पढ़ा है। डॉ. लोहिया ने जवाब दिया कि वह एक नोबुल स्पीच है। इस तरह के विशेषण के प्रयोग से नेहरू चौंक गये और बहुत खुश हुये। डॉ. लोहिया ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में आपके सपने बहुत ही अच्छे हैं और लगता है कि आप कांग्रेस आन्दोलन में एक नया जीवन फूँकने के लिए तैयार हैं। इस समय डॉ. लोहिया की उम्र केवल 26 साल की थी। कहते हैं कि इस मुलाक़ात के बाद जवाहर लाल नेहरू ने डॉ. राम मनोहर लोहिया को अपना बहुत ही करीबी मानना शुरू कर दिया था। लोहिया वास्तव में जवाहर लाल नेहरू के बहुत बड़े प्रशंसक थे। लोहिया महात्मा गांधी के बहुत बड़े भक्त थे लेकिन गांधी के बाद उनके सम्मान के हक़दार जवाहर लाल नेहरू ही थे।
भारत की विदेश नीति को मूल रूप से जवाहर लाल नेहरू ने डिजाइन किया था। भारत के समकालीन इतिहास का हर विद्यार्थी जनता है कि विदेश नीति की जवाहर लाल की जो भी सोच थी उसमें डॉ. राम मनोहर लोहिया का बहुत बड़ा योगदान था। जवाहर लाल नेहरू ने हर मंच पर लोहिया की तारीफ़ की और उनकी राय को महत्व दिया।
हमारी पीढ़ी के लोगों के लिए यह सोच पाना बहुत मुश्किल है कि डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसा स्वतंत्रचेता व्यक्ति किसी का शिष्य हो सकता है। लेकिन जब डॉ. लोहिया के सबसे प्रभावशाली अनुयायी ने अपनी एक अहम किताब में लिखा है तो उसे मान लेने में कोई संकोच नहीं किया जाना चाहिए। जिस लेख का हवाला यहाँ लिया जा रहा है कि वह मधु लिमये की किताब,” म्यूज़िंग्स ऑन करेंट प्राब्लम्स एंड पास्ट इवेंट्स ( 1988) ” में छपा हुआ है।
मधु जी ने लिखा है कि डॉ. लोहिया को कांग्रेस में शामिल करने का श्रेय सेठ जमनालाल बजाज को जाता है जो डॉ. लोहिया के पिता जी के परिचित थे। जमनालाल बजाज उन दिनों कांग्रेस के कोषाध्यक्ष भी थे। उन्होंने ही डॉ. लोहिया को महात्मा गांधी से मिलवाया था और महात्मा जी ने जवाहर लाल नेहरू से राम मनोहर लोहिया को लखनऊ कांग्रेस के समय 1936 में मिलवाया।। महात्मा गांधी के सुझाव पर उस साल जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया था। वे ताज़ा ताज़ा जेल से छूट कर आये थे। लोहिया से उनकी मुलाक़ात कांग्रेस अध्यक्ष के टेंट में ही हुयी। उन्होंने डॉ. लोहिया को समाजवादी चिंतन धारा का उभरता हुआ सितारा कह कर संबोधित किया। उन्होंने पूछा कि क्या लोहिया ने उनके अध्यक्षीय भाषण को पढ़ा है। डॉ. लोहिया ने जवाब दिया कि वह एक नोबुल स्पीच है। इस तरह के विशेषण के प्रयोग से नेहरू चौंक गये और बहुत खुश हुये। डॉ. लोहिया ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में आपके सपने बहुत ही अच्छे हैं और लगता है कि आप कांग्रेस आन्दोलन में एक नया जीवन फूँकने के लिए तैयार हैं। इस समय डॉ. लोहिया की उम्र केवल 26 साल की थी। कहते हैं कि इस मुलाक़ात के बाद जवाहर लाल नेहरू ने डॉ. राम मनोहर लोहिया को अपना बहुत ही करीबी मानना शुरू कर दिया था। लोहिया वास्तव में जवाहर लाल नेहरू के बहुत बड़े प्रशंसक थे। लोहिया महात्मा गांधी के बहुत बड़े भक्त थे लेकिन गांधी के बाद उनके सम्मान के हक़दार जवाहर लाल नेहरू ही थे।