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    Social media : सोशल मीडिया के दौर में अजेण्डा सेटिंग और परम्परागत मीडिया परिदृश्य

    अगर पूरे देश में किसी पार्टी के लिए कोई सबसे ज्यादा आईटी सेल बदनाम है तो वह भारतीय जनता पार्टी की आईटी सेल है। क्योंकि नरेंद्र मोदी की लहर चलाने के लिए नरेंद्र मोदी के झूठें जुमलों के साथ भाजपा की आईटी सेल भी झूठ फैलाने में पीछे नहीं है। लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी की लहर चलाने के लये बीजेपी आईटी सेल का बहुत बड़ा हाथ है। बीजेपी आईटी सेल ने सोशल मीडिया में मोदी को जीरो से हीरो बनाने के लिए इस तरह झूठ फैलाया कि, भक्त जैसे लोगों ने उसे सही मान लिया। इसके अलावा इस चुंगल  में सिर्फ भक्त लोग ही नहीं आये बल्कि भक्तों के साथ देश की भोलीभाली जनता भी इनके चुंगल में फंस गई।

    अजेण्डा सेटिंग ख़ुद ही अपनी परिभाषा दे देता है। किसी के अजेण्डा को सेट करना। ये अजेण्डा सेट किसके लिए होता है? समाज के लिए। कैसे होता है? मीडिया के द्वारा जिसे आप निष्पक्ष मानते हैं। कहाँ होता है? टीवी, अख़बार, सोशल मीडिया आदि जगहों पर। क्यों होता है? किसी ख़ास विचारधारा के विचारों को समाज में स्थापित करने के लिए।

    मेनस्ट्रीम मीडिया ये काम अपने पैदाईश के समय से ही करती रही है। लेकिन आज दौर है सोशल मीडिया का। आमतौर पर मेनस्ट्रीम मीडिया का अजेण्डा सेटिंग पेड न्यूज़ के द्वारा, पार्टियों से मोटे पैसे लेकर होता है। या फिर, पार्टियाँ उनके लाभ हेतु दूसरे बंदोबस्त करती है। इसमें सामने वाले के पास आपके अजेण्डे के ख़िलाफ़ बोलने के लिए जगह नहीं होता, अतः ये अभी तक बहुत ख़तरनाक साबित हुआ है। लेकिन सोशल मीडिया के आने से इनका काम थोड़ा कठिन हो गया है।

    सोशल मीडिया का हाल थोड़ा इतर है, क्योंकि ये आजकल का मीडिया है और इसमें ना तो लिखने के पैसे मिलते हैं, ना ही किसी को आपके अजेण्डा पर बोलने से (उसी जगह) आप रोक सकते हैं। सोशल मीडिया पर अजेण्डा सेटिंग, जहाँ तक मैं समझता हूँ, पार्टियों के आईटी सेल द्वारा शुरू किया जाता है।

    चूँकि ये हर हाथ में उपलब्ध है और आप कुछ भी लिखने को स्वतंत्र हैं, अचानक से आप और हम इसके अजेण्डे का हिस्सा बन जाते हैं। समाज में हर विचारधारा के लोग होते हैं, और अपने-अपने चौपालों में हर बात पर चर्चा करते रहते हैं। अब ये चौपाल सोशल मीडिया पर आ गया है।

    इसमें अब सीधा खेल संख्या का है कि जिस विचारधारा के ज़्यादा समर्थक हैं, वो आपके पोस्ट पर इतने बम मारेगा कि इलाक़ा धुआँ-धुआँ हो जाएगा। यहाँ लेवल प्लेइंग फ़ील्ड है कि कोई भी आकर लिख सकता है। आप कितनों को ब्लॉक मारोगे?

    इसका फ़ायदा सबसे ज़्यादा दक्षिणपंथियों को हुआ है। परम्परागत मीडिया में वामपंथी और काँग्रेसी विचारधारा के लोगों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वहाँ आप ज़ी न्यूज़, इंडिया टीवी जैसे चार चैनलों से उनका मुक़ाबला नहीं कर सकते। अंग्रेज़ी का हर चैनल, और ‘स्थापित सम्माननीय एंकर’, वामपंथी या काँग्रेस के टुकड़ों पर जीने वाले रहे हैं। यहाँ पर सेंध लगाना नामुमकिन है क्योंकि लोग उन्हें सच्चाई का स्तम्भ मानते हैं।

    इसी कारण जब मोदी ने सोशल मीडिया मैनेजमेंट 2011 (या उससे पहले से ही) करना शुरू किया तो उसका परिणाम ये हुआ कि आम जनता तक उनकी बात पहुँचने लगी और हर उस विषय पर चर्चा होने लगा जो स्टूडियो का मुँह ताकते रह जाती थी। याद कीजिए कि 2010 में जब फेसबुक ज़ोर पकड़ रहा था तब आप क्या लिखते और शेयर करते थे।

    आज जब सोशल मीडिया पर ही पूरा मेनस्ट्रीम मीडिया शिफ़्ट होना चाह रहा है तब यहाँ क्या लिखा और शेयर किया जा रहा है, ये देख लीजिए। आज आप अपने हिसाब की ख़बरों के लिंक, हर विषय पर अपने विचार, अपने विरोधी विचारधाराओं के ख़िलाफ़ अपने विचार रखते हैं। ये काम मेनस्ट्रीम मीडिया होने ही नहीं देता था। पहले फेसबुक और ट्विटर आदि को मनोरंजन की जगह समझा जाता था लेकिन ये बात 2012-13 तक बदल गई और यहाँ मनोरंजन कम, और राजनीति, समाज, कला आदि से जुड़ी बातें ज़्यादा लिखी जाने लगी है।

    अब यहाँ प्रबुद्ध लोग डिबेट करते हैं, जिनके पास किसी विषय पर ज्ञान है वो उस पर लिखते हैं, ख़बरों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, पुराने लिंक और फ़ोटो के माध्यम से आप सबूत के साथ किसी के झूठ को तुरंत पकड़ लेते हैं। अब ‘सोशल नेटवर्किंग’ जैसी चीज़ रही ही नहीं, वो अब सोशल मीडिया हो गई है जिसका मुख्य काम ख़बरों पर चर्चा और न्यूज़ कन्जम्पशन है। यहाँ फ़ीडबैक तुरंत मिलता है, लेटर टू एडिटर की राह नहीं देखनी होती।

    अब अजेण्डा सेटिंग हर विचारधारा कर सकती है, लेकिन अंततः इस लोकतांत्रिक जगह पर अंतिम फ़ैसला जनता के ही हाथ में है कि वो सेट हो कि ना हो क्योंकि आधे मिनट में आपको हर तरह की ख़बर और सूचना गूगल के माध्यम से मिल जाती है। या फिर, आप किसी को जानकार मानते हैं तो उनके विचारों को सही समझ कर अपने लिए बेहतर निर्णय लेने की स्थिति में होते हैं।

    अब स्टूडियो और सम्पादन कक्ष से पैसे लेकर एक विचारधारा के बीज बोने की परम्परा अस्तगामी है क्योंकि लोग सोशल मीडिया पर उनके झूठ तुरंत पकड़ लेते हैं। सोशल मीडिया की अजेण्डा सेटिंग सही है या ग़लत, ये पता नहीं लेकिन यहाँ आदमी को सूचना का इतना एक्सेस है कि वो चाहे तो सच या झूठ जान सकता है। यही कारण है कि वामपंथी और काँग्रेसी विचारधारा के लोग आपको हर जगह स्वयंसिद्ध ज्ञानी मानते हुए इस व्यवस्था को अराजकता का पर्याय मानते हुए बिलबिलाते नज़र आते हैं।

    बीजेपी आईटी सेल की यह खासियत है कि, वह अपने आपको देश की जनता के सामने एक देशभक्त की तरह पेश करती है। इसके लिए सोशल मीडिया में अगर सबसे ज्यादा देशभक्ति फेसबुक पेजेज अगर किसी के चलाये जा रहे है तो वह बीजेपी आईटी सेल वालों के चलाये जा रहे है। फिर इन्ही पेजों के जरिये से मोदी के लिए ख़बरें चलाई जाती है। एक तरफ तो सोशल मीडिया फेसबुक में भारतीय सेना के नाम पर लाइक और शेयर मांगते है और फिर इन्ही के जरिये से देशभक्ति दिखाकर मोदी की खबरें चलाई जाती है और विरोधी नेताओं के खिलाफ झूठी खबरें भी फैलाई जाती है। इसके अलावा भक्त लोग इनको काफी शेयर्स भी करते है जिसके कारण यह वायरल भी बहुत होती है। ध्रुव राठी ने पूरी तरह से बीजेपी आईटी सेल के काले कारनामे को खोलकर रख दिया है कि, वह किस तरह से झूठ और विरोधी नेताओं के खिलाफ ज़हर फैलाती है।

    सोशल मीडिया की बढ़ती व्यापकता के साथ इसके बढ़ते दुष्प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता। आज सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव हमारी आंखों के सामने हैं।

    आज दुनिया फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप जैसे प्लैटफ़ॉर्म पर सिमट गई है। बात सोशल नेटवर्किंग और व्यक्तिगत मनोरंजन से आगे निकल चुकी है। दुनिया भर के समाचारों का अंबार लगा हुआ है। लेकिन समाचारों की प्रामाणिकता को लेकर हमेशा संदेहास्पद स्थिति बनी रहती है। जिसके चलते कभी-कभी बेकसूर लोग भी बदनाम हो जाते हैं। नवभारत टाइम्स डॉट कॉम का 'सत्यखोजी' ब्लॉग और एबीपी न्यूज का 'वायरल सच' जैसा कार्यक्रम सोशल मीडिया के झूठ को समाज के सामने ला रहा है।

    आज आवश्यकता है कि समाज अभिव्यक्ति के इस सार्वजनिक मंच की उपयोगिता को समझते हुए इसका उपयोग सकारात्मक रूप से करे जिससे कि सोशल मीडिया की प्रमाणिकता बनी रहे।

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