नीलिमा सिंह: प्रचार तंत्र की फ़ैक्ट्री में गढ़े गये पुतले
क्या फेसबुक पर आपकी मुलाकात इनसे हुई है..
प्रचार तंत्र की फ़ैक्ट्री में गढ़े गये पुतले
फेसबुक पर तरह तरह के विषयों पर चर्चा चलती रहती है ।कई बार बड़ी उपयोगी जानकारी मिलती है ।साथ में
दुनियादारी के कुछ नये संदर्भों का ज्ञान भी मिलता है । फेस बुक पर एक विशेष विचार धारा के लोगों से अकसर सामना होता रहता है ।इनके विचारों और कार्यशैली की एक रूपता को देखते हुए अब ऐसा महसूस होने लगा है कि हम प्रचार तन्त्र की फैक्ट्री से तैयार माल से रू ब रू हो रहे हैं ।इनकी डिज़ाइनिंग और प्रोग्रामिंग कम्प्यूटरीकृत लगती है ।यह चर्चा के अखाड़े में यह कहते हुए प्रवेश करते हैं कि मैं तो तटस्थ हूँ ।मुझे राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है और शुरू हो जाते हैं ।
#Stage1. ये किसी सामयिक विषय की चर्चा में कहीं से भी आ टपकते हैं । सीधे कांग्रेस पर आरोपों का हमला शुरू ।चर्चा किसी सामयिक बात पर हो रही है पर इनकी जुमले बाजी बीच में घुस अाती है ।कुछ जुमले हैं जो उसी भाषा में और उसी शैली में लगातार उछाले जाते हैं, जैसे कांग्रेस ने सत्तर साल में देश को लूट खाया , कांग्रेस की सरकार घोटालों की सरकार थी, सत्तर साल चुप रहे अब तीन साल का हिसाब मांग रहे हो ।अापको लगेगा कि ये गलत फ़हमी के शिकार हैं ।आप बड़े धैर्य से उनकी आपत्तियों का निराकरण कर देंगे ।तब शुरू होती है।
#Stage_2. ये फ़ौरन विषय बदल देंगे ।फिर रिकार्ड किये गये जुमले शुरू - नेहरू की जगह पटेल को प्रधान मंत्री नहीं बनाया, नेहरू ने प्रधान मन्त्री बनने के लिये देश का बटवारा करा दिया, गाँधी ने भगत सिंह को फाँसी दिलवा दी वगैरह ।अरे बात तो नोटबन्दी पर या गोरक्षा दल पर हो रही थी ! ये आरोप कहाँ से प्रकट हो गये ? अब आप फिर से उनके भ्रमों का निवारण करने में समय बर्बाद कीजिये ।आप सोचेंगे कि वह सन्तुष्ट हो गये, लेकिन कहाँ ?
#Stage_3 वह आप पर सवालों की झड़ी लगा देंगे आप तब कहाँ थे जब ऐसा हुआ. ? आपने तब क्यों नहीं विरोध किया ? आप तब क्यों चुप रहे ? अब आपके सामने नये सवालों की जवाबदेही आ गयी ।या तो जवाब दो और नहीं तो हार मान कर फूट लो ।आप हार नहीं मानेंगे तो व्यर्थ में सफ़ाइयाँ देने लगेंगे ।आप अपनी बात कह चुके तो ।
#Stage_4 वह फिर भी डटे रहेंगे ।अब अपनी खिसियाहट मिटाने के लिये गाँधीनेहरू परिवार पर, आप पर गाली गलौज शुरू कर देंगे ।या आपका मज़ाक बनायेंगे और या कहेंगे कि आप जैसे मूर्खों से बात करना पसन्द नहीं करते ।आप समझ जाइये कि अब इसके आगे की रिकार्डिंग समाप्त ।चर्चा का मूल विषय कुछ भी हो इनका मूल विषय नहीं बदलता ।
#Stage_5 ये हमेशा बहस भूतकाल में करते है। वर्तमान की या तो इन्हें जानकारी नहीं होती या वर्तमान से भागना चाहते है।
#Stage_6 फिर आपके इनबाक्स में आकर फरजी आईडी से गरियाना शुरू कर देंगे। अश्लील फोटो व कमेन्टस से गालियो की बौछार करेंगे । अब तो संभावना बनती है कि इनको BLOCK कर दो या फिर इनके निम्न स्तर पर गिरकर ईट का जवाब पत्थर से दे। पहली संभावना बेहतर है।
#Stage_7 इनकी पहचान बड़ी आसानी से हो जाती है। प्रोफाइल फोटो, कवर फोटो, ग्रुप या 4/6 पोस्ट देखकर पता चल जाता है कि इसकी पैदावार नाथूरामजादे के खानदान की है। ज्यादातर बहस करने वाले कम शिक्षा प्राप्त ,गरीब सवर्ण परिवार के गुमराह बच्चे, युवा है जो असली आईडी के अलावा, कई फरजी लड़कियों के नाम की फेक आईडी व फेक ग्रुप बनाकर- पैसे के लिए काम करते है।
शायद यह मेरा अकेले का अनुभव नहीं है । मुझे लगता है कि इस प्रक्रिया के प्रारंभिक लक्षण पहचानते ही अपने समय और धैर्य की रक्षा के लिये सजग हो जाना चाहिये ।यह समझ लेना चाहिये कि कम्प्यूटरीकृत उपकरण तर्क नहीं कर सकता , विचार नहीं कर सकता, भले बुरे परिणामों की चिन्ता नहीं कर सकता ।केवल कमांड को फ़ौलो करता है ।
जुमलों की इस राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक हठधर्मी का कोई इलाज नहीं है ।इसके सह अस्तित्व को स्वीकार कर लेना चाहिये ।
प्रचार तंत्र की फ़ैक्ट्री में गढ़े गये पुतले
फेसबुक पर तरह तरह के विषयों पर चर्चा चलती रहती है ।कई बार बड़ी उपयोगी जानकारी मिलती है ।साथ में
दुनियादारी के कुछ नये संदर्भों का ज्ञान भी मिलता है । फेस बुक पर एक विशेष विचार धारा के लोगों से अकसर सामना होता रहता है ।इनके विचारों और कार्यशैली की एक रूपता को देखते हुए अब ऐसा महसूस होने लगा है कि हम प्रचार तन्त्र की फैक्ट्री से तैयार माल से रू ब रू हो रहे हैं ।इनकी डिज़ाइनिंग और प्रोग्रामिंग कम्प्यूटरीकृत लगती है ।यह चर्चा के अखाड़े में यह कहते हुए प्रवेश करते हैं कि मैं तो तटस्थ हूँ ।मुझे राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है और शुरू हो जाते हैं ।
#Stage1. ये किसी सामयिक विषय की चर्चा में कहीं से भी आ टपकते हैं । सीधे कांग्रेस पर आरोपों का हमला शुरू ।चर्चा किसी सामयिक बात पर हो रही है पर इनकी जुमले बाजी बीच में घुस अाती है ।कुछ जुमले हैं जो उसी भाषा में और उसी शैली में लगातार उछाले जाते हैं, जैसे कांग्रेस ने सत्तर साल में देश को लूट खाया , कांग्रेस की सरकार घोटालों की सरकार थी, सत्तर साल चुप रहे अब तीन साल का हिसाब मांग रहे हो ।अापको लगेगा कि ये गलत फ़हमी के शिकार हैं ।आप बड़े धैर्य से उनकी आपत्तियों का निराकरण कर देंगे ।तब शुरू होती है।
#Stage_2. ये फ़ौरन विषय बदल देंगे ।फिर रिकार्ड किये गये जुमले शुरू - नेहरू की जगह पटेल को प्रधान मंत्री नहीं बनाया, नेहरू ने प्रधान मन्त्री बनने के लिये देश का बटवारा करा दिया, गाँधी ने भगत सिंह को फाँसी दिलवा दी वगैरह ।अरे बात तो नोटबन्दी पर या गोरक्षा दल पर हो रही थी ! ये आरोप कहाँ से प्रकट हो गये ? अब आप फिर से उनके भ्रमों का निवारण करने में समय बर्बाद कीजिये ।आप सोचेंगे कि वह सन्तुष्ट हो गये, लेकिन कहाँ ?
#Stage_3 वह आप पर सवालों की झड़ी लगा देंगे आप तब कहाँ थे जब ऐसा हुआ. ? आपने तब क्यों नहीं विरोध किया ? आप तब क्यों चुप रहे ? अब आपके सामने नये सवालों की जवाबदेही आ गयी ।या तो जवाब दो और नहीं तो हार मान कर फूट लो ।आप हार नहीं मानेंगे तो व्यर्थ में सफ़ाइयाँ देने लगेंगे ।आप अपनी बात कह चुके तो ।
#Stage_4 वह फिर भी डटे रहेंगे ।अब अपनी खिसियाहट मिटाने के लिये गाँधीनेहरू परिवार पर, आप पर गाली गलौज शुरू कर देंगे ।या आपका मज़ाक बनायेंगे और या कहेंगे कि आप जैसे मूर्खों से बात करना पसन्द नहीं करते ।आप समझ जाइये कि अब इसके आगे की रिकार्डिंग समाप्त ।चर्चा का मूल विषय कुछ भी हो इनका मूल विषय नहीं बदलता ।
#Stage_5 ये हमेशा बहस भूतकाल में करते है। वर्तमान की या तो इन्हें जानकारी नहीं होती या वर्तमान से भागना चाहते है।
#Stage_6 फिर आपके इनबाक्स में आकर फरजी आईडी से गरियाना शुरू कर देंगे। अश्लील फोटो व कमेन्टस से गालियो की बौछार करेंगे । अब तो संभावना बनती है कि इनको BLOCK कर दो या फिर इनके निम्न स्तर पर गिरकर ईट का जवाब पत्थर से दे। पहली संभावना बेहतर है।
#Stage_7 इनकी पहचान बड़ी आसानी से हो जाती है। प्रोफाइल फोटो, कवर फोटो, ग्रुप या 4/6 पोस्ट देखकर पता चल जाता है कि इसकी पैदावार नाथूरामजादे के खानदान की है। ज्यादातर बहस करने वाले कम शिक्षा प्राप्त ,गरीब सवर्ण परिवार के गुमराह बच्चे, युवा है जो असली आईडी के अलावा, कई फरजी लड़कियों के नाम की फेक आईडी व फेक ग्रुप बनाकर- पैसे के लिए काम करते है।
शायद यह मेरा अकेले का अनुभव नहीं है । मुझे लगता है कि इस प्रक्रिया के प्रारंभिक लक्षण पहचानते ही अपने समय और धैर्य की रक्षा के लिये सजग हो जाना चाहिये ।यह समझ लेना चाहिये कि कम्प्यूटरीकृत उपकरण तर्क नहीं कर सकता , विचार नहीं कर सकता, भले बुरे परिणामों की चिन्ता नहीं कर सकता ।केवल कमांड को फ़ौलो करता है ।
जुमलों की इस राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक हठधर्मी का कोई इलाज नहीं है ।इसके सह अस्तित्व को स्वीकार कर लेना चाहिये ।
लेखिका- नीलिमा सिंह
(ये लेखिका के निजी विचार हैं।)