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    पं जवाहरलाल नेहरु का समाजवाद और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस


    जवाहरलाल नेहरू (1889-1964) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐसे प्रथम नेता थे जिन्होंने भारत को समाजवाद का रास्ता दिखाया। यह उनका ही अथक प्रयास था कि 1920 ई. के दशक से समाजवाद, नेहरू और कांग्रेस अपने- आप में समाहित हो गए। पंडित नेहरू का प्रभावशाली भाषण, प्रस्तुतीकरण का तरीका तथा आकर्षक व्यक्तित्व बेमिसाल था। इन सब गुणों के कारण वह भारत के समाजवादियों की प्रथम श्रेणी में आ गए।

    नेहरू अपने जीवन के प्रारंभिक काल में जब लंदन में कानून की पढ़ाई कर रहे थे, वे फेबियनों तथा समाजवादी विचारों से प्रभावित हुए थे। किन्तु, उन्होंने समाजवादी विचार केवल किताबों से नहीं बल्कि व्यवहार से ग्रहण किया था। 1920 ई. में नेहरू ने उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों को देखा। इसने उनकी आंखें खोल दीं। अब तक वे ग्रामीण जीवन से अनभिज्ञ थे। वहां के रहने वाले भूखे-नंगे किसानों की स्थिति अत्यंत ही दयनीय थी। इस परिदृष्य ने उन्हें बहुत प्रभावित किया जिसे उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा हैः

    ‘‘उनको और उनकी गरीबी देखकर मैं शर्मिंदा और दुःखी हो गया। शहर के कुछ लोग आराम का जीवन जीते हैं, भौतिक कठिनाइयों से दूर रहते हैं। किन्तु देहातों में रहने वाले करोडों लोग दीन जीवन जीने के लिए विवश है। हम इन भूखे-नंगे, दलित और पीडि़त लोगों के प्रति संवेदनहीन हैं।’’

    इस दर्दनाक तस्वीर ने नेहरू के मध्यवर्गीय दृष्टिकोण को बदल दिया और उन्होंने समाजवाद की ओर देखना शुरू किया। 1926 ई. में उन्होंने अनेक यूरोपीय देशों का भ्रमण किया। इन दौरों से भी वे प्रभावित हुए। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि की हैसियत से बु्रसेल्स में आयोजित उत्पीडि़त राष्ट्रवादियों के सम्मेलन में भाग लिया। वहां उन्होंने पष्चिमी मजदूर जगत के अंतर्विरोध और साम्यवादियों के खुलेपन को देखा। वे साम्यवादियों से काफी प्रभावित हुए जिसका उन्होंने निम्न शब्दों में वर्णन किया है-

    ‘‘मैं पश्चिमी जगत के मजदूर संगठनों के अंतर्विरोध से परिचित हुआ। अतः मैं साम्यवादियों की ओर झुक गया, यद्यपि इसमें अनेक दोष हैं, तथापि यह पाखंड और साम्राज्यवादी नहीं हैं। इनसे मैं प्रभावित हुआ तथा इस समय रूस में जो अषातीत परिवर्तन हो रहे थे, उनसे भी। बु्रसेल्स सम्मेलन के बाद नेहरू अपने पिता मोतीलाल नेहरू और बहन कृष्णा नेहरू के साथ सोवियत संघ गए। मोतीलाल नेहरू तो नए रूस और सोवियत के सामूहिक विचार को नहीं समझ सके किन्तु, नेहरू वहां के बड़े परिवर्तनों को देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने कहा-
    ‘‘मेरा दृष्टिकोण विस्तृत हो गया तथा निष्चित रूप से राष्ट्रीयता एक संकीर्ण विचार लगने लगी। राजनीतिक आजादी, स्वतंत्रता आदि जरूरी थे, किन्तु सही दिशा में वे केवल कदम मात्र थे। सामाजिक आजादी तथा समाज और राज्य के सामाजिक ढांचे के बिना न तो व्यक्ति और न देश ही विकास कर सकता है। सोवियत रूस ने अपने कुछ दुखद पहलुओं के बावजूद मुझे काफी आंदोलित किया। यह विष्व को एक संदेश देता है।’’

    सोवियत यात्रा ने नेहरू को काफी प्रभावित किया। समाजवाद अब उनका नया धर्म बन गया तथा अनेक दोषों के बावजूद सोवियत संघ में समाजवाद का पौधा लहलहा रहा था। उन्होंने लिखा, ‘‘मैं कबूल करता हूं कि मास्को से प्रभावित होकर मैं जो संदेश लाया हूं, वे बड़े अच्छे हैं तथा मेरे अध्ययन को इन प्रभावों ने संपुष्ट किया है, फिर भी बहुत सी चीजें ऐसी हैं जिन्हें मैं नहीं समझता हूं तथा जिनकी मैं प्रशंसा भी नहीं कर सकता।’’

    नेहरूजी के समकालीन रचनाओं तथा भाषणों में सोवियत संघ की प्रशंसाएं जगह-जगह मिलती हैं। अपनी किताब में उन्होंने लिखा, ‘‘कोई इस विचित्र यूरोपीय देश के आकर्षक को नकार नहीं सकता जो कांटों का ताज पहने हुए हैं। यदि रूस अपनी समस्याओं का संविधिक हल प्राप्त कर लेता है, तो हम भारत में भी ऐसा ही काम कर सकते हैं।’’ भारत लौटने पर 3 सितम्बर, 1923 ई. को कलकत्ता में आयोजित अखिल बंगाल छात्र सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं साम्यवाद में समाज का एक आदर्ष देखता हूं’’ तथा उसी भाषण में उन्होंने घोषणा की-

    ‘‘और रूस, उसका क्या होगा? हम लोगों की तरह वह भी अछूत है तथा अनेक देश हमारी आलोचना करके गलती करते हैं। अपनी अनेक गलतियों के बावजूद वह आज साम्राज्यवाद का सबसे बड़ा शत्रु है तथा पूर्वी देशों के साथ उसका व्यवहार न्यायपूर्ण और उदार है। वह पूर्वी देशों के साथ समानता का व्यवहार करता है। वह कोई विजेता या उसे उच्च नस्ल के होने की कोई अतिभावना नहीं है, अतः वह स्वागत योग्य है।’’

    नेहरू बड़े तुनकमिजाज थे। चूंकि वह सोवियत संघ के समाजवाद से काफी प्रभावित थे, अतः वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच इसका प्रचार-प्रसार करने लगे। बुद्धिजीवी भी प्रभावित हुए। वे राष्ट्रीय आंदोलन की रीढ़ थे। समाजवाद के संदेशों का प्रचार करते हुए नेहरू ने महसूस किया कि ‘‘भारत में भी एक दिग्भ्रमित किस्म का समाजवाद है। यह माक्र्सवाद से प्रभावित है तथा लोगों को आकर्षित कर रहा है। कुछ लोग तो अपने को सौ फीसदी माक्र्सवादी समझते हैं। सोवियत संघ में इसके लोकप्रिय होने, विशेषकर वहां की पंचवर्षीय योजनाओं के कारण भारत, यूरोप और अमेरिका में वह लोकप्रिय हो रहा है।’’

    इस समय कांग्रेस केवल आजादी के लिए लड़ रही थी, किन्तु सामाजिक प्रभावों ने नेहरू को आर्थिक रूप से भी सोचने के लिए विवश किया। उनका विचार था कि जब तक जरूरतमंद और वंचित लोगों का कल्याण न होगा आजादी बेमानी होगी, अतः 1929 ई. में लाहौर के अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा-

    ‘‘यह कहा जाता है कि कांग्रेस पूंजी और श्रम तथा जमींदार और रैयत के बीच संतुलन बनाए रखे। किन्तु, यह संतुलन बिगड़ता नजर आता है। किसानों तथा मजदूरों का बेहद शोषण-दोहन होता है। अतः इसे दूर करने का एक ही उपाय है कि शोषक वर्ग का प्रभाव कम किया जाए।’’

    उसी भाषण में उन्होंने बल देकर कहा, ‘‘हमारा आर्थिक कार्यक्रम मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित होना चाहिए तथा मनुष्य को धन के लिए बलि नहीं चढ़ा देना चाहिए। यदि उद्योग मजदूरों को भूखे रखकर संचालित किया जाता है तो उसे बंद कर देना चाहिए। यदि खेतिहर मजदूर को पेट पर भोजन नहीं मिलता है तो बिचैलिए, जो उनको इससे वंचित करते हैं, उन्हें अलग हो जाना चाहिए। कल-कारखानों या खेतों में काम करने वाले मजदूरों को अवष्य ही न्यूनतम मजदूरी देनी चाहिए। उससे वे आराम से रह सकते हैं तथा उनमें काम करने की भावना रहेगी।’’

    नेहरू जी ने भारत की गरीबी का मूल कारण ब्रिटिश सरकार की नीतियों को बतलाया। उनकी नीति के मूल में भारत का शोषण-दोहन था। अतः नेहरू जी ने 26 जनवरी, 1930 ई. के स्वतंत्रता दिवस का जो शपथ पत्र तैयार किया उसमें स्पष्ट रूप से ब्रिटिश सरकार की निंदा की। इसमें कहा गया, ‘‘भारत में ब्रिटिश सरकार ने लोगों को न केवल उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया है, बल्कि इसने उनका शोषण-दोहन भी किया है तथा भारत को आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक अैर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विनष्ट किया है।’’ इस स्थिति में उन्होंने ‘‘भारत का तात्कालिक लक्ष्य तय किया ‘‘इसलिए, यह सोचा जा सकता है कि लोगों का शोषण बंद किया जाए। राजनीतिक रूप से इसका अर्थ आजादी है तथा ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद। इससे सभी सामाजिक वर्ग के विषेषधिकारों तथा निहित स्वार्थों का अंत हो जाएगा। पूरी दुनिया इसके लिए संघर्ष कर रही है। भारत इससे अलग नहीं रह सकता तथा भारत का स्वतंत्रता संघर्ष विष्व के इसी संघर्ष से जुड़ जाएगा।’’

    नेहरू के समाजवाद के स्वरूप को समझना एक पहेली है। इसके कारण स्पष्ट हैं। प्रथम, नेहरू किसी विशेष समाजवादी सोच के नहीं थे। उनके विचार पष्चिमी और पूर्वी परंपराओं का मिश्रण था। द्वितीय, वह भारत की परंपराओं और आवश्कताओ के अनुसार समाजवाद को लाना चाहते थे। अतः एक अर्थ में नेहरू का समाजवाद माक्र्सवाद और गांधीवाद, लेनिनवाद और उदारवाद, सर्वहारा समाजवाद और राष्ट्रवादी मध्यवर्गवाद, अति विकसित उद्योगवाद और ग्रामीण कुटीर उद्योगवाद, हिंसक क्रांति और अहिंसक क्रांति के बीच समझौतापरक बन गया। इसी आधार पर नेहरू के समाजवाद की निंदा ‘‘समझौतावाद’’ और ‘‘भ्रमवाद’’ कहकर की गई है। इस तरह समाजवाद की आलोचना करते हुए कुछ लोगों ने नेहरू को किसी विषय में पारंगत नहीं माना।’’
    दूसरी ओर, नेहरू की प्रशंसा यह कह कर की गई है कि वह ‘‘भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में समाजवादी प्रवृति लाने वाले ‘‘पुरोधा’’ और ‘‘विश्व समाजवाद की आशा’’ थे। डा. वी.पी. वर्मा कहते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं कि जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और देश के सामने समाजवाद को ठोस के रूप में स्थापित किया।
    नेहरू के समाजवाद की निंदा-स्तुति की गई है। अतःएव यहां पर आवश्यक है कि हम उनके माक्र्सवाद और साम्यवाद, समाजवाद, गांधी चिंतन और कांग्रेस के आदर्शवाद की अवधारणा को समझ लें। ऐसा करने पर ही हम नेहरू के समाजवाद को समझ सकते हैं।

    संदर्भ
    1. नेहरू जवाहरलाल, एन आॅटोबायोग्राफी (एलाइड पब्लिर्स प्राइवेट लि., बंबई, 192), पृष्ठ, 25
    2. नेहरू जवाहरलाल, एन आॅटोबायोग्राफी, पूर्वोद्धृत, पृष्ठ, 52
    3. वही, पृष्ठ, 163
    4. नेहरू, कृष्णा, विथ नो रिग्रेट्स (जौन डे, न्यू यार्क, 1945), पृष्ठ-57
    5. नेहरू जवाहरलाल, एन आॅटोबायोग्राफी, पूर्वोद्धृत, पृष्ठ, 166
    6. नेहरू, जवाहरलाल, सोवियत रूसः सम रेंडम स्केचेज एंड इम्प्रेसन्स, (चेतना लि., बंबई, 1929) पृष्ठ, 33-34
    7. वही, पृष्ठ, 1-3
    8. नेहरू, जवाहरलाल, विफोर ऐंड आफ्टर इंडेपेंडेंसः ए कलेक्षन आॅफ दी
    इंपोटेंट स्पीचेज आॅफ जवाहरलाल नेहरू, 1922-50, इडि. बाई. जे.एमब्राइट, (इंडियन प्रिटिंग वक्र्स, नई दिल्ली, 1950), पृष्ठ, 66
    9. नेहरू जवाहरलाल, एन आॅटोबायोग्राफी, पूर्वोद्धृत, पृष्ठ, 182
    10. वही, पृष्ठ, 183
    11. प्रेसिडेंषियल एड्रेस ऐट इंडियन नेषनल कांग्रेस, लाहौर, 1929, इन जवाहरलाल नेहरू इंडियाज फ्रीडम, पृष्ठ, 16
    12. वहीं, पृष्ठ, 15-16
    13. नेहरू जवाहरलाल, एन आॅटोबायोग्राफी, एपेंडिक्स ए, पूर्वोद्धृत, पृष्ठ, 612
    14. नेहरू जवाहरलाल, ‘हृेयर इंडिया’ इन इंडियाज फ्रीडम, पृष्ठ, 32
    15. अहमद, इलियास, ट्रैंड्स इन सोषलिस्टिक थाॅट ऐंड मुवमेंट (दि इंडियन प्रेस लि., इलाहाबाद, 1937), पृष्ठ, 10
    16. भूंभरी, सी.पी., नेहरू ऐंड सोषलिस्टिक मूवमेंट इन इंडिया, इंडियन जर्नल आॅफ पोलिटिकल साइंसेज, भाग-30, अपै्रल-जून 1969, नं. 2, पृष्ठ, 143
    17. विष्वनाथन के.वी., जवाहरलाल नेहरूज कन्सेप्ट आॅफ डेमोक्रेटिक सोषलिज्म, इंडियन जर्नल आॅफ पाॅलिटिकल साइसेंज, अक्टूबर-दिसंबर, 1965, भाग 26, नं. 4, पृष्ठ, 91
    18. श्रीधरनी कृष्ण लाल, माई इंडियन, माई वेस्ट (विटर गोलमेज, लंदन, 1942), पृष्ठ, 247
    19. वर्मा वी.पी. माॅडर्न इंडियन पाॅलिटिकल थाॅट, पृष्ठ, 593

    पंडित जवाहरलाल नेहरू का समाजवाद और भारतीय

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