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    इंदिरा गांधी जी शताब्दी समारोह का भव्य आयोजन वाराणसी स्थित पराडकर भवन मे

    ये सुनो कांग्रेसियों..

    बहुत  बर्दाश्त कर लिया.. बहुत आँसू बहा लिए.. बस अब..आर-पार की लड़ाई चाहिए.. ये बात पूरे देश के कांग्रेसियों को एकजुट होकर बोलना चाहिए क्योंकि देश हमारा है तो हमारा भी अधिकार है... झूठ और फरेब के खिलाफ आवाज बुलंद करना होगा.. हर एक कांग्रेसी इस देश का सिपाही हैं यह देश हमारा है रक्षा हमें खुद करनी होगी और एक बात नहीं भूलनी चाहिए अधिकार मांगने से नहीं मिलता उसे छिनना पड़ता है दोस्तों आओ शपथ लें कि हम अपने हक को यूँ ही किसी को हड़पने नहीं देंगे.. छोटे मोटे मन मुटाव को दर किनार करके आओ दिखा दें कि बिखरी उँगलियाँ जब मुट्ठी बनती हैं तो सिर्फ दाँत ही नहीं जबड़ा भी तोड़ देती हैं...पिछले दिनों दिल्ही के सोसल मिडिया में सिखने को मिली आचार्य प्रमोद Acharya Pramod Krishnam और राजा दिग्बिजय सिंह के संवादों का..

    हा कार्य कर्ताओ में अब जोश आ रहा है ये इ सुभ सन्देश है खैर आज बनारस में दिनांक: 15 जुलाई समय : 10 बजे प्रातःस्थल: पराडकर स्मृति भवन, वाराणसी इंदिरा जी शताब्दी समारोह कार्यक्रम, का आयोजन किया गया imwthcongress के सहयोग के लिए भाई रवि पाठक जी का बहुत आभार , जो इस कार्यक्रम में सहयोग किया जिसका फेसबुक विडियो पर लाइव किया गया, भाई शेलेन्द्र जी से भी आराम से बात हुई.... बहुत कुछ सोचने समझने का मौका मिला बनारस काग्रेस को

    बनारस कांंग्रेस

    आज वाराणसी स्थित पराडकर भवन मे इंदिरा गांधी जी शताब्दी समारोह का भव्य आयोजन जिलाध्यक्ष कांंग्रेस कमेटी वाराणसी श्री प्रजानाथ जी शर्मा की अध्यक्षता मे संपन्न हुआ। कार्यक्रम का प्रारंभ स्व इंदिरा जी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर हुआ। इस अवसर पर "राष्ट्र निर्माण में लौह नेत्री इंदिरा गांधी जी का योगदान" विषयक एक सेमिनार भी आयोजित था।

    हजारो की तादात मे कांंग्रेस के कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों, गांधीवादी विचारक, कांंग्रेस के सभी फ्रंटल संगठनो युवक कांंग्रेस से लेकर महिला कांंग्रेस ने बढचढ कर हिस्सा लिया। प्रमुख वक्ताओं में डा सतीश राय , डा रामकुमार, पूर्व विधायक श्री अजय राय, पूर्व सांसद श्री राजेश मिश्रा, पूर्व सांसद प्रत्याशी एवं बीएचयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष श्री अनिल श्रीवास्तव जी, वरिष्ठ कांंग्रेसी विचारक श्री अनिल "अनु" आदि ने इंदिरा जी के व्यक्तित्व एवं राष्ट्र निर्माण के योगदानों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

    डा सतीश राय जी ने बताया विशेष रुप से इंदिरा जी के तीन फैसले जिसने राष्ट्र को नई दिशा दी थी। 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। उस समय कांग्रेस में दो गुट थे इंडिकेट और सिंडिकेट। इंडिकेट की नेता इंदिरा गांधी थीं। सिंडिकेट के लीडर थे के.कामराज। इंदिरा गांधी पर सिंडिकेट का दबाव बढ़ रहा था। सिंडिकेट को निजी बैंकों के पूंजीतंत्र का प्रश्रय था। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी। उस वक्त मोरारजी देसाई वित्त मंत्री थे। वे इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर चुके थे। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश लाया गया और 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया। उस वक्त इन बैंकों के पास देश का 70 प्रतिशत जमापूंजी थी।

    राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की 40 प्रतिशत पूंजी को प्राइमरी सेक्टर जैसे कृषि और मध्यम एवं छोटे उद्योगों) में निवेश के लिए रखा गया था। देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक की शाखाएं खुल गईं। 1969 में 8261 शाखाएं थीं। 2000 तक 65521 शाखाएं हो गई। 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। हालांकि 2000 के बाद यह प्रक्रिया धीमी पड़ गई।

    राजा-महाराजओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति की 1967 के आम चुनावों में कई पूर्व राजे-रजवाड़ों ने सी.राजगोपालाचारी के नेतृत्व में स्वतंत्र पार्टी का गठन लिया था। इनमें से कई कांग्रेस के बागी उम्मीदवार भी थे। इसकी के चलते इंदिरा गांधी ने प्रिवीपर्स खत्म करने का संकल्प ले लिया। 23 जून 1967 को ऑल इंडिया कांग्रेस ने प्रिवीपर्स की समाप्ति का प्रस्ताव पारित कर दिया। 1970 में संविधान में चौबीसवां संशोधन किया गया और लोकसभा में 332-154 वोट से पारित करवा लिया। हालांकि राज्य सभा में यह प्रस्ताव 149-75 से पराजित हो गया। राज्यसभा में हारने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति वीवी गिरी से सारे राजे-महाराजाओं की मान्यता समाप्त करने को कहा। मान्यता समाप्ति के इस अध्यादेश को ननीभाई पालखीवाला ने सुप्रीमकोर्ट में सफलतापूर्वक चुनौती भी दी गई। इस बीच 1971 के चुनाव हो गए और इंदिरा गांधी को जबर्दस्त सफलता मिली। उन्होंने संविधान में संशोधन कराया और प्रिवीपर्स की समाप्ति कर दी। इस तरह राजे-महाराजों के सारे अधिकार और सहूलियतें वापस ले ली गईं।

    हर राजा-महाराजा को अपनी रियासत का भारत में एकीकरण करने के एवज में उनके सालाना राजस्व की 8.5 प्रतिशत राशि भारत सरकार द्वारा हर साल देना बांध दिया गया था। यह समझौता सरदार पटेल द्वारा देसी रियासतों के एकीकरण के समय हुआ था। इस निर्णय के बाद सारे राजे-महाराजे इंदिरा गांधी के खिलाफ हो गए। इंदिरा गांधी ने संसद में कहा कि एक समतावादी समाज की स्थापना के लिए प्रिवीपर्स और विशेष दर्जा जैसे प्रावधान बाधक थे। इस निर्णय से देश में सामंतवादी प्रवृत्तियों के शमन में मदद मिली और लोकतंत्र मजबूत हुआ।

    ऐसे ही बांगलादेश का उदय भी हुआ आजादी के पहले अंग्रेज बंगाल का धार्मिक विभाजन कर गए थे। हिंदू बंगालियों के लिए पश्चिम बंगाल और मुस्लिम बंगालियों के लिए पूर्वी पाकिस्तान बना दिए गए थे। पूर्वी पाकिस्तान की जनता पाकिस्तान की सेना के शासन में घुटन महसूस कर रही थी। उनके पास नागरिक अधिकार नहीं थे। शेख मुजीबुर रहमान की अगुआई में मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तान की सेना से गृहयुद्ध शुरू कर दिया। नतीजतन भारत के असम में करीब 10 लाख बांगला शरणार्थी पहुंच गए, जिनसे देश में आंतरिक और आर्थिक संकट पैदा हो गया। भारत बांग्ला देश के स्वाधीनता आंदोलन को रेडिकल मानता था और मुक्ति वाहिनी को संगठित करने के लिए उसने अपनी फौज भेजना शुरू कर दिया था। 1971 तक हमारी सेना वहां पहुंच गई। पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों को यह लगने लगा था कि भारतीय सेना की मदद से पूर्वी पाकिस्तान में उनकी हार सुनिश्चित है। भारतीय सेना द्वारा बांगलादेश में कार्रवाई करने से पहले ही पाकिस्तान की हवाई सेना ने भारतीय एयर बेस पर हमले शुरू कर दिए। भारत की सेना को हमलों की भनक लग चुकी थी। हमले भारतीय वायुसेना ने निष्फल कर दिए। इसी के साथ 1971 का दूसरा भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हो गया। पाकिस्तान कमजोर पड़ने लगा तो संयुक्त राष्ट्रसंघ में पहुंच गया और युद्ध विराम के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की। 7 दिसंबर को अमेरिका ने प्रस्ताव पारित करते हुए तुरंत युद्ध विराम लागू करने के लिए कहा जिस पर स्टालिन शासित रूस ने वीटो कर लिया। रूस का मानना था कि भारतीय सेना की यह कार्रवाई पाकिस्तान की सेना के दमन के खिलाफ थी। हिंदुस्तान की सेना ने मुक्तिवाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तान की 90,000 सैनिकों वाली सेना को परास्त कर दिया। 16 दिसंबर को भरातीय सेना ढाका पहुंच गई। पाकिस्तान की फौज को आत्मसमर्पण करना पड़ा। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद किसी भी देश की सेना का यह सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। विश्व के मानचित्र में एक नये देश बांग्लादेश का उदय हुआ, देर सवेर पाकिस्तान के सहयोगी अमेरिका और चीन ने भी बांग्लादेश को मान्यता दे दी। इन तीन बड़े निर्णयों के कारण इंदिरा गांधी को आयरन लेडी कहा जाने लगा।

    डा रामकुमार जी ने अपने संबोधन भाषण मे कहा कि कांग्रेस का यह सम्मेलन राष्ट्र निर्माण में इंदिराजी के उल्लेखनीय योगदान, उनकी दूरदर्शी सोच और देश की एकता एवं अखंडता के लिए उनके बलिदान को याद करता है। इंदिरा गांधी बेहद लोकप्रिय और महान नेता थीं। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने उल्लेखनीय साहस आरै प्रतिबधता के साथ राष्ट्र का नेतृत्व किया तथा देश विरोधी ताकतों का डटकर सामना किया। उन्होंने अनेक चुनौतियों के बावजूद देश का संचालन किया। इंदिरा गांधी सदैव महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आजाद और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अन्य दिग्गजों की दूरदृष्टि, आजादी के महान् लक्ष्यों और भारतीय संविधान के स्थाई मूल्यों पर दृढ़तापूर्वक कायम रहीं। कांग्रेस का यह सम्मेलन गरीबों एवं वंचितों, दलितों, आदिवायिों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को हितों के लिए इंदिरा गांधी की आजीवन प्रतिबद्धता के प्रति गहरा आभार व्यक्त करता है। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपना सारा प्रयास मजबूत ओर आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करने के लिए लगा दिया। वे गुट निरपेक्ष आंदोलन और सभी विकासशील देशो की सर्वमान्य अग्रणी नेता थीं। उपनिवेशवाद और रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में उनके योगदान और समर्थन तथा विश्व शांति के प्रति उनकी वचनबद्धता की सराहना पूरी दुनिया ने की।उन्होंने जोर देते हुए कहा कांग्रेस का यह सम्मेलन हरित क्रांति के सपने को सच बनाने के लिए, परमाणु और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की क्षमताओं का निर्माण करने के लिए, बैंकों के राष्ट्रीयकरण द्वारा आर्थिक नीति को सामाजिक आयाम प्रदान करने के लिए, समाज के कमजोर वर्गों को सम्मानजनक जीवन और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, 1971 में दक्षिण एशिया के इतिहास और भूगोल का आकार-प्रकार बदलने और शांति एवं निःशस्त्रीकरण की वैश्विक ताकतों को मजबूत करने के लिए उनके प्रेरणादायी और शानदार नेतृत्व का स्मरण करता है और उसकी सराहना करता है। उनका अदम्य साहस, धैर्य और निडरता हममें से प्रत्येक के लिए सदैव प्रेरणादायी है।

    जिलाध्यक्ष श्री प्रजानाथ जी शर्मा ने अपने अध्यक्षीय भाषण का प्रारंभ इंदिरा जी के बीस फरवरी 1969 को संसद मे दिए संबोधन का जिक्र किया। इंदिरा जी ने उस संबोधन मे कहा था "जब हम एकता की बात करते हैं तो हमें ये देखना होगा कि हम पार्टी के संकीर्ण हितों से ऊपर रहे और ऐसी कोई भी बात न करें जो हमारी स्थापित प्रक्रिया और किसी के भी मन में किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न करने वाला हो, हमारे नागरिकों के बीच में, असुरक्षा की भावना पैदा करे"। श्रीमती इंदिरा गांधी की सोच, नीतियां और विचार हमारे पूरे देश के लोगों को हमेशा प्रभावित करते रहेंगे। देश के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने कई नए और चुनौतीपूर्ण फैसले लिए जो शायद कोई और प्रधानमंत्री न ले पाता या यूं कहें कि लेने की हिम्मत नहीं कर पाता। उनके फैसलों के पीछे मुख्य सोच यह रही कि इस देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना को इस तरह बदला जाए ताकि सबको समान सुअवसर मिले। अध्यक्ष जी ने यह भी बताया कि 14 जून, 1972 को संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन को संबोधित करते हुए इंदिरा जी ने कहा था कि हम में से कोई भी पूरी तरह मनुष्य और सभ्य नहीं हो सकता जब तक कि वह सभी को न केवल साथी के रूप में देखे अपितु हर एक को कुदरत के बनाए हुए दोस्त के रूप में देखे। सन 1976 में हमारे देश के संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ शब्द का समावेष उनकी देश और समाज के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। श्रीमती इंदिरा गांधी 1966 से 1977 और फिर 1980 से 1984 तक इस देश की प्रधानमंत्री रहीं हैं।

    डा राजेश मिश्रा जी ने अपने भाषण मे कहा कि इंदिरा जी इस देश की अबतक की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में जानी जाती हैं खासकर इस देश की गरीब और दबी-कुचली और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के बीच उन्हें काफी समर्थन मिला। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं की। हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने जिस समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की परिकल्पना मात्र की थी, उसे मुखर कर, सार्वजानिक रूप से और राजनीतिक सिद्धांत के रूप में स्थापित करने का काम इंदिरा गांधी ने ही किया। सांस्कृतिक और धार्मिक कट्टरपंथियों की चुनौतियों के बावजूद उन्होंने देश को उस दिशा में ले जाने का सतत् प्रयास किया जो उनके मुताबिक देश के हित में था। ये काम उन्होंने अपने खून की आखिर बूंद तक जारी रखा। इंदिरा गांधी ने प्रधान मंत्री के रूप में देश को चुनौती दर चुनौती का मुकाबला करते हुए उबारा और अपने कार्य कौशल के बल पर न केवल दुनिया को भारत के बढ़ते हुए प्रभाव से अवगत कराया अपितु देश के लोगों का आत्मविश्वास भी बढाया । ये कार्य उन्होंने बिना किसी बाहरी ताकत या सैन्य गठबंधन के इशारे पर चले बिना पूरा किया। उन्होंने कभी भी किसी तथाकथित शक्तिशाली देश की परवाह नहीं की। 1966 में जब वह प्रधान मंत्री बनी थीं तो हमारे देश में अनेक राजनीतिक चर्चाएं देश की रूपरेखा परिभाषित करने के प्रयास में थी। उन्होंने साफ कर दिया था कि उनकी सरकार और वो स्वयं सामाजिक बदलाव के लिए कटिबद्ध हैं और वैसी ताकतें जो सामाजिक बदलाव के खिलाफ हैं, उन्हें हरगिज बर्दास्त नहीं किया जाएगा। इंदिरा गांधी ने अपना रास्ता खुद बनाया, नीतियों एवं कार्यक्रम निर्धारित किए संभवतः पहले किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा कदम नहीं उठाया था, जिनमें अनेक खतरे थे और जिनका विरोध था। यह खतरा न केवल विपक्ष की ओर से था, बल्कि स्वयं के प्रशासन की तरफ से भी था। यह पूरी तरह से लोगों की सद्भावना एवं समर्थन के बल पर आगे बढ़ी। इन्दिरा गांधी जी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने आम लोगों की ऊर्जा को सारे बंधनों से मुक्त कर दिया ताकि वे भारत के आधुनिकीकरण में योगदान कर सकें।



    और अंत मे धन्यवाद ज्ञापन शहर कांंग्रेस अध्यक्ष श्री सीताराम केसरी जी ने किया।

    ये रही फेसबुक लिंक



    खैर इस खबर को पत्रिका वेब पोर्टल ने भी जगह दे है, न्यूज़ पेपर और काग्रेस के के पेज कल देखे जायेगे... खैर पोर्टल के अनुसार

    इंदिरा गांधी ने धार्मिक कट्टरवाद की सोच पर बने पाकिस्तान का कर दिया था बंटवारा

    वाराणसी. पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी धर्म विशेष के सांस्कृतिक- राजनीतिक वर्चस्व की जगह सर्व-धर्म समभाव के चिंतन पर खड़े राष्ट्रवाद की पक्षधर थी। यही वजह रही कि उन्होंने पाकिस्तान को खंडित कर महज धर्म-संस्कृति की नींव पर टिकी राष्ट्रनिर्माण की अवधारणा को धवस्त कर दिया। बलिदान पूर्व अंतिम भाषण में, 'मेरे शरीर के खून का हर कतरा राष्ट्र के काम आयेगा' की बातें उन जैसी आयरन लेडी ही कर सकती थी।

    राजीव गांधी स्टडी सर्कल द्वारा स्व.श्रीमती इन्दिरा गांधी के शताब्दी वर्ष के समारोह के क्रम में शनिवार को पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित संगोष्ठी में ये बातें कही गईं। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता, गांधी अध्ययन पीठ के निदेशक प्रो.आरपी द्विवेदी ने कहा कि इन्दिरा जी समर्थ राष्ट्रनिर्माण की नायक थीं। सन् 2012 में 5 हजार किलोमीटर तक के मारक मिसाइल अग्नि-5 के सफल प्रक्षेपण के बाद प्रेस से बात करते हुए मिसाइलमैन डॉ. कलाम ने सफलता का असल श्रेय इन्दिरा गांधी की दूर दृष्टि को दिया था। दरअसल भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने, हरित क्रांति, बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स खात्मे, 1971 की जीत एवं बांग्लादेश निर्माण, सिक्किम विलय आदि इंदिरा जी के असाधारण योगदान हैं।

    प्रदेश कांग्रेस के उपाध्याक्ष व वाराणसी के पूर्व सांसद डॉ.राजेश मिश्र ने कहा कि इंदिरा गांदी बोलने में कम, करने में कहीं ज्यादा विश्वास करती थीं। जननायक के रूप में उनकी राजनीतिक संघर्ष क्षमता बेमिसाल थी।

    पूर्व मंत्री अजय राय ने कहा कि सामाजिक समरसता की राजनीति और शासन की भूमिका के लिए बलिदान हो जाने वाली इंदिरा गांधी विकास विरोधी धार्मिक भावनाओं की संकीर्ण राजनीति के दौर में और ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं।

    सर्कल के राष्ट्रीय समन्वयक प्रो.सतीश राय ने कहा कि हरित क्रांति और बैंक राष्ट्रीयकरण के साथ कृषि को उद्योग की दिशा में आगे बढ़ाने वाली इंदिरा गांधी के समय किसान सर्वाधिक सुखी था। डॉ. आनंद तिवारी ने कहा कि इंदिराजी गांदी ने अर्थनीति को जन अभिमुख बनाया।

    इस मौके पर डॉ. क्षेमेन्द्र त्रिपाठी (बीएचयू), प्रो.एनके व्यास (बीकानेर), महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो.एमएम वर्मा, कांग्रेस नेता अनिल श्रीवास्तव, वीसी राय आदि ने भी विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता जिला कांग्रेस अध्यक्ष प्रजानाथ शर्मा ने की और महानगर अध्यक्ष सीताराम केसरी ने आभार जताया। अतिथियों का स्वागत राजीव गांधी स्टडी सर्कल वाराणसी समन्वयक डॉ.धर्मेन्द्र सिंह ने तथा संचालन डॉ.जेपी राय ने किया। इस मौके पर शैलेन्द्र सिंह, अनीस सोनकर, राम सुधार मिश्र आदि मौजूद रहे।

    इस मौके पर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत की 1971 की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी सामरिक जीत के युद्ध सैनिक रहे कर्नल एसके मिश्रा को सम्मानित किया गया।

    खैर इम्विथ काग्रेस इस बात की प्रसंसा करती है की अब संघठन की कार्य प्रणाली को भाई रवि पाठकः जी देखे, अभी वाराणसी काग्रेस में गुट का असतोष है जिसे राजा दिग्बिजय सिंह के संज्ञान में लाया जायेगा , प्रयास अच्छा है, टीम में कोई बड़ा छोटा नहीं सब गुरु बने रहे , काग्रेस आला कमान को टीम के अन्दर एकता की समन्वय जरुरी ही , सभी राजनितिक कार्य कर्ताओ  को टास्क देना चाहिए और उसकी समीक्षा करनी चाहिए , अंत में आला कमान को उनकी सोसल मिडिया में भूमिका को ले कर अध्यन करते रहना चाहिए ..

    जय काग्रेस
    बचत की आदत डाल लो...यूं दर्द बांटा न करो...

    #स्व_ज्ञान

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