कमला कौल नेहरू की संघर्ष
28 फरवरी, 1936 को स्विटज़रलैंड में कमला नेहरू की बेहद कम उम्र में टीबी से मृत्यु हो गयी। टी. बी. उस समय भयंकर बीमारी मानी जाती थी। उनके पति श्री जवाहरलाल नेहरू उस समय जेल में थे।
नेहरूजी जी का पत्नी प्रेम
लेखक के नाते पहली चीज जिसे नेहरूजी मूल्यवान मानते हैं वह है इन्सानी रिश्ता। इन्सानी रिश्ते को राजनीति और अर्थशास्त्र की बहसों के बहाने नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। खासकर पति-पत्नी के संबंधों के बीच इन्सानी रिश्तों का एहसास रहना चाहिए। नेहरूजी ने रेखांकित किया है कि भारत और चीन में इन्सानी रिश्तों के एहसास को नज़र-अंदाज़ नहीं किया गया। यह हमारी पुरानी अक्लमंद तहज़ीब की देन है। इंसानी एहसास व्यक्ति में संतुलन और हम-वज़नीपन पैदा करता है। नेहरूजी लिख रहे हैं कि इन दिनों यह एहसास कम हो गया है। इसी क्रम में नेहरूजी ने लिखा "यक़ीनी तौर पर इसे मुमकिन होना चाहिए कि भीतरी संतुलन का बाहरी तरक्की से, पुराने ज़माने के ज्ञान का नये जमाने की शक्ति और विज्ञान से मेल क़ायम हो। सच देखा जाय, तो हम लोग दुनिया के इतिहास की एक सी मंज़िल पर पहुँच गए हैं कि अगर यह मेल न क़ायम हो सका, तो दोनों का ही अंत और नाश रखा हुआ है।" नेहरूजी चाहते थे हम मानव-सभ्यता की अब तक की सभी महान उपलब्धियों को आत्मसात करके विकास करें। कमला के बारे में उनका लेखन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे उसे अपनी पत्नी के रुप में नहीं देखते थे, वे उसे भारत की औरतों का प्रतीक मानते थे।
नेहरूजी ने अपनी पत्नी कमला नेहरू के लिए लिखा "मेरे लिए वह हिंदुस्तान की महिलाओं, बल्कि स्त्री-मात्र, की प्रतीक बन गई। कभी-कभी हिंदुस्तान के बारे में मेरी कल्पना में वह एक अज़ीब तरह से मिल-जुल जाती, उस हिंदुस्तान की कल्पना में, जो अपनी सब कमजोरियों के बावजूद हमारा प्यारा देश है, और जो इतना रहस्यमय और भेद-भरा है। कमला क्या थी ? क्या मैं उसे जान सका था, उसकी असली आत्मा को पहचान सका था? क्या उसने मुझे पहचाना और समझा था ? क्योंकि मैं भी अनोखा आदमी रहा हूँ और मुझमें भी ऐसा रहस्य रहा है, ऐसी गहराईयाँ रही हैं, जिनकी थाह मैं खुद नहीं लगा सका हूँ। कभी-कभी मैंने ख़याल किया है कि वह मुझसे इसी वजह से ज़रा सहमी रहती थी। शादी के मामले में मैं खातिर-ख़ाह आदमी न रहा हूं, न उस वक्त था। कमला और मैं, एक-दूसरे से कुछ बातों में बिलकुल ज़ुदा थे, और फिर भी कुछ बातों में हम एक-जैसे थे। हम एक-दूसरे की कमियों को पूरा नहीं करते थे। हमारी जुदा-जुदा ताकत ही आपस के व्यवहार में कमजोरी बन गई। या तो आपस में पूरा समझौता हो, विचारों का मेल हो, नहीं तो कठिनाईयां तो होंगी ही। हम में कोई भी साधारण गृहस्थी की ज़िन्दगी गुजारे, उसे कुबूल करते हुए, नहीं बिता सकते थे।"
कमला नेहरू की बीमारी के समय पंडित नेहरू उनके साथ रहे और उनकी देखभाल भी की, यह एकमात्र उनके करीब रहने और एक-दूसरे से शेयर करने का सबसे बेहतरीन समय था। कमला की खूबी थी कि वह निडर और निष्कपट थीं। वे नेहरूजी के राजनीतिक लक्ष्यों को जानती, मानती और उसमें यथाशक्ति मदद भी करती थी। सन् 1930 में जब कांग्रेस के सभी नेता जेलों में बंद थे उन्होंने राजनीति में जमकर रुचि दिखाई। मजेदार बात यह थी उस समय सारे देश में औरतें सड़कों पर संघर्ष के मैदान में उतर पड़ीं, इन औरतों में कमला भी थीं। मैदान में उतरने वाली औरतों में सभी वर्गों और समुदायों की औरतें थीं। नेहरूजी ने 'हिंदुस्तान की कहानी' में इसका जिक्र किया है। उस समय मोतीलाल नेहरू ने बीमारी की हालत में कांग्रेस के आंदोलन का नेतृत्व किया और बड़ी संख्या में औरतों ने उस आंदोलन में हिस्सा लिया। यह घटना 26 जनवरी 1931 की है। इस दिन सारे देश में आज़ादी की सालगिरह मनाने का फैसला लिया गया। देश में हजारों जलसे हुए उनमें एक यादगार प्रस्ताव पास किया गया। यह प्रस्ताव हर सूबे की भाषा में था। कमला ने इसके पहले 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। कमला दिखने में सामान्य थीं, लेकिन कर्मठता के मामले में असाधारण थी। उनकी क्षयरोग के कारण 28 फ़रवरी 1936 में स्विटजरलैंड में मृत्यु हुई। नेहरूजी ने अंतिम समय का वर्णन करते हुए लिखा है, "ज्यों-ज्यों आखिरी दिन बीतने लगे, कमला में अचानक तबदीली आती जान पड़ी। उसके जिस्म की हालत, जहां तक हम देख सकते थे, वैसी ही थी, लेकिन उसका दिमाग़ अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों पर कम ठहरता। वह मुझसे कहतीं कि कोई उसे बुला रहा है या कि उसने किसी शक़्ल या आदमी को कमरे में आते देखा, जबकि मैं कुछ न देख पाता था। 28 फ़रवरी को, बहुत सबेरे उसने अपनी आखिरी सांस ली। इंदिरा वहां मौजूद थी, और हमारे सच्चे दोस्त और इन महीनों के निरंतर साथी डाक्टर अटल भी मौजूद थे।
नेहरूजी जी का पत्नी प्रेम
लेखक के नाते पहली चीज जिसे नेहरूजी मूल्यवान मानते हैं वह है इन्सानी रिश्ता। इन्सानी रिश्ते को राजनीति और अर्थशास्त्र की बहसों के बहाने नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। खासकर पति-पत्नी के संबंधों के बीच इन्सानी रिश्तों का एहसास रहना चाहिए। नेहरूजी ने रेखांकित किया है कि भारत और चीन में इन्सानी रिश्तों के एहसास को नज़र-अंदाज़ नहीं किया गया। यह हमारी पुरानी अक्लमंद तहज़ीब की देन है। इंसानी एहसास व्यक्ति में संतुलन और हम-वज़नीपन पैदा करता है। नेहरूजी लिख रहे हैं कि इन दिनों यह एहसास कम हो गया है। इसी क्रम में नेहरूजी ने लिखा "यक़ीनी तौर पर इसे मुमकिन होना चाहिए कि भीतरी संतुलन का बाहरी तरक्की से, पुराने ज़माने के ज्ञान का नये जमाने की शक्ति और विज्ञान से मेल क़ायम हो। सच देखा जाय, तो हम लोग दुनिया के इतिहास की एक सी मंज़िल पर पहुँच गए हैं कि अगर यह मेल न क़ायम हो सका, तो दोनों का ही अंत और नाश रखा हुआ है।" नेहरूजी चाहते थे हम मानव-सभ्यता की अब तक की सभी महान उपलब्धियों को आत्मसात करके विकास करें। कमला के बारे में उनका लेखन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे उसे अपनी पत्नी के रुप में नहीं देखते थे, वे उसे भारत की औरतों का प्रतीक मानते थे।
नेहरूजी ने अपनी पत्नी कमला नेहरू के लिए लिखा "मेरे लिए वह हिंदुस्तान की महिलाओं, बल्कि स्त्री-मात्र, की प्रतीक बन गई। कभी-कभी हिंदुस्तान के बारे में मेरी कल्पना में वह एक अज़ीब तरह से मिल-जुल जाती, उस हिंदुस्तान की कल्पना में, जो अपनी सब कमजोरियों के बावजूद हमारा प्यारा देश है, और जो इतना रहस्यमय और भेद-भरा है। कमला क्या थी ? क्या मैं उसे जान सका था, उसकी असली आत्मा को पहचान सका था? क्या उसने मुझे पहचाना और समझा था ? क्योंकि मैं भी अनोखा आदमी रहा हूँ और मुझमें भी ऐसा रहस्य रहा है, ऐसी गहराईयाँ रही हैं, जिनकी थाह मैं खुद नहीं लगा सका हूँ। कभी-कभी मैंने ख़याल किया है कि वह मुझसे इसी वजह से ज़रा सहमी रहती थी। शादी के मामले में मैं खातिर-ख़ाह आदमी न रहा हूं, न उस वक्त था। कमला और मैं, एक-दूसरे से कुछ बातों में बिलकुल ज़ुदा थे, और फिर भी कुछ बातों में हम एक-जैसे थे। हम एक-दूसरे की कमियों को पूरा नहीं करते थे। हमारी जुदा-जुदा ताकत ही आपस के व्यवहार में कमजोरी बन गई। या तो आपस में पूरा समझौता हो, विचारों का मेल हो, नहीं तो कठिनाईयां तो होंगी ही। हम में कोई भी साधारण गृहस्थी की ज़िन्दगी गुजारे, उसे कुबूल करते हुए, नहीं बिता सकते थे।"
कमला नेहरू की बीमारी के समय पंडित नेहरू उनके साथ रहे और उनकी देखभाल भी की, यह एकमात्र उनके करीब रहने और एक-दूसरे से शेयर करने का सबसे बेहतरीन समय था। कमला की खूबी थी कि वह निडर और निष्कपट थीं। वे नेहरूजी के राजनीतिक लक्ष्यों को जानती, मानती और उसमें यथाशक्ति मदद भी करती थी। सन् 1930 में जब कांग्रेस के सभी नेता जेलों में बंद थे उन्होंने राजनीति में जमकर रुचि दिखाई। मजेदार बात यह थी उस समय सारे देश में औरतें सड़कों पर संघर्ष के मैदान में उतर पड़ीं, इन औरतों में कमला भी थीं। मैदान में उतरने वाली औरतों में सभी वर्गों और समुदायों की औरतें थीं। नेहरूजी ने 'हिंदुस्तान की कहानी' में इसका जिक्र किया है। उस समय मोतीलाल नेहरू ने बीमारी की हालत में कांग्रेस के आंदोलन का नेतृत्व किया और बड़ी संख्या में औरतों ने उस आंदोलन में हिस्सा लिया। यह घटना 26 जनवरी 1931 की है। इस दिन सारे देश में आज़ादी की सालगिरह मनाने का फैसला लिया गया। देश में हजारों जलसे हुए उनमें एक यादगार प्रस्ताव पास किया गया। यह प्रस्ताव हर सूबे की भाषा में था। कमला ने इसके पहले 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। कमला दिखने में सामान्य थीं, लेकिन कर्मठता के मामले में असाधारण थी। उनकी क्षयरोग के कारण 28 फ़रवरी 1936 में स्विटजरलैंड में मृत्यु हुई। नेहरूजी ने अंतिम समय का वर्णन करते हुए लिखा है, "ज्यों-ज्यों आखिरी दिन बीतने लगे, कमला में अचानक तबदीली आती जान पड़ी। उसके जिस्म की हालत, जहां तक हम देख सकते थे, वैसी ही थी, लेकिन उसका दिमाग़ अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों पर कम ठहरता। वह मुझसे कहतीं कि कोई उसे बुला रहा है या कि उसने किसी शक़्ल या आदमी को कमरे में आते देखा, जबकि मैं कुछ न देख पाता था। 28 फ़रवरी को, बहुत सबेरे उसने अपनी आखिरी सांस ली। इंदिरा वहां मौजूद थी, और हमारे सच्चे दोस्त और इन महीनों के निरंतर साथी डाक्टर अटल भी मौजूद थे।