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    समाचार : आईटी सेक्टर में छंटनी की तलवार


    आज के समाचार में NDTV के रविश कुमार जी के मुताबिक आईटी सेक्टर भारत का प्रीमियम सेक्टर माना जाता है. इसमें होने वाले हर तरह के बदलाव की चर्चा होती है, जबकि अन्य सेक्टर कोयला या स्टील सेक्टर के बदलाव की नहीं. वजह ये है कि इस सेक्टर ने कम समय में लाखों इंजीनियरों को दुनिया दिखाई. इनकी बढ़ती मांग के कारण ही गली-गली में इजीनियरिंग कॉलेज खुलते चले गए. उनके हिसाब से इंजीनियरिंग कालेज में दिन के दिन फ़ीस बड रहे है, लेकिन इतनी महगी पढाई के बावजूत उन्हें अच्छी नौकरी की बात तो दूर जिनकी नौकरी है उस पर भी खतरा है , इस लिए अब हल्ला मचाया जा रहा है की अब खेती पर बल दिया जाये, मने आज के नवयुवक इतनी महगी सिक्षा के बाद हल जोते, मई ये नहीं कहता की कृषि पर बल नहीं देना चाहिए, वो भारत की अर्थ ब्यवस्था है लेकिन या ये सही पैमाना है , मिडिया से ये खबर गयाब है , बस योगी जी और मोदी जी..
    देश की बड़ी आईटी कंपनियां इन्‍फोसिस, टेक महिंद्रा और विप्रो इस साल परफॉर्मेंस रिव्‍यू का बहाना बनाकर छंटनी की तैयारी कर रही है। हेड हंटर्स इंडिया के फाउंडर-चेयरमैन और एमडी के. लक्ष्‍मीकांत ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इस साल 56 हजार से ज्‍यादा आईटी प्रोफेशनल्‍स की जॉब जा सकती है। आने वाले तीन सालों के भीतर छटनी का आंकड़ा 1.75 लाख से 2 लाख सालाना होगा।
     

    व्हाट्स एप पर भी अब लोग उबल रहे है "स्मृति इरानी : 'मोदी सरकार ने करोड़ों युवाओं को रोज़गार दिया'...कहाँ? कब? कौन सा?बल्कि ३ करोड़  लोगो को बेरोजगर किया है इन तीन साल मे ,यह बेरोजगार  लोग क्या करेगे ?

    moneycontrol की इस वेबसाइड के अनुसार इस साल भारत की आईटी कंपनियों में काम कर रहे 56 हजार लोगों की नौकरी पर छंटनी की तलवार लटक रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ कंपनियों ने फरवरी से ही छंटनी शुरू भी कर दी है और बाकी सही वक्त का इंतजार कर रही हैं। दरअसल, कंपनियां हर साल अप्रेजल में उन कर्मचारियों को सबसे निचली कैटगरी में डाल देती हैं, जिन्हें बाहर का रास्ता दिखाना हो। वैसे तो इसमें हर लेवल के कर्मचारी हैं लेकिन सबसे ज्यादा तादाद 6-7 साल अनुभव वाले युवा इंजीनियरों की है।

    कंपनियां बदलती जरूरतों को वजह बताती हैं, लेकिन असल में ग्रोथ और मुनाफे का दबाव, ग्लोबल फैक्टर्स और पिछली गलतियों का भी बड़ा हाथ होता है। क्या है मौजूदा स्थिति और आगे क्या होगा। यह कंपनियां अप्रेजल के लिए ज्यादा कठोर पैमाने अपना रही है। हर साल औसतन वर्कफोर्स का 1-1.5 फीसदी बाहर जाता है। लेकिन इस साल वर्कफोर्स के 4.5 फीसदी को बाहर करने की तैयारी की जा रही है।

    सालाना परफॉर्मेंस के आधार पर अप्रेजल बनता है। आईटी कंपनियां अप्रेजल में सबसे निचली कैटेगरी को खतरा होता है। निचली कैटेगरी मतलब नौकरी जाने की नोटिस कभी भी मिल सकती है।

    गौरतलब है कि यूएस में लोकल भर्तियों पर ट्रंप का जोर है जिसके चलते एच1बी वीजा नियमों पर ट्रंप ने सख्ती का रुख अपनाया है। इसके तहत भारत में छंटनी कर अमेरिका में कर्मचारी भर्ती करने की जोर है। दरअसल, आईटी सेक्टर में ऑटोमेशन के बढ़ने के चलते नई टेक्नोलॉजी में कम लोगों की जरूरत महसूस की जा रही है। आईटी क्षेत्र डिजिटल युग के लिए बदल रहा है और इसके लिए नए टैलेंट की तलाश कर रही है। वहीं ग्लोबल इकोनॉमी में ठंडेपन की चुनौती बनी हुई है। आईटी सेक्टर की कंपनियों पिछले साल ग्रोथ और मुनाफे में गिरावट भी दर्ज की गई है।

    navbharattimes की ये रिपोर्ट भी कुछ यु कहती है की आईटी सेक्टर में काम करने वाले लोगों की सोशल मीडिया टाइमलाइन पर 'कन्फेशंस' के तौर पर आपको ब्रेकअप, नई रिलेशनशिप, फिल्मों का डिस्कशन और यहां तक कि मैनेजर से पंगेबाजी के किस्से मिल जाएंगे, लेकिन इन दिनों इस सेक्टर के लोग बेहद गंभीर समस्या पर चर्चा कर रहे हैं।

    सिंगल डिजिट में सैलरी बढ़ोतरी और छंटनी के डर का सामना कर रहे इंजीनियरों ने अपनी कंपनियों के अमेरिका में हायरिंग प्लान और इंडिया में कॉस्ट कट्स को कामकाज से जुड़े हालिया मुद्दों के लिए जिम्मेदार ठहराया है, भले ही मसला कितना भी छोटा क्यों न हो।

    इन्फोसिस के फेसबुक एंप्लॉयी ग्रुप पर एक पोस्ट में कहा गया, 'जयपुर की हैरतअंगेज गर्मियों में आपका स्वागत है क्योंकि इन्फोसिस के जयपुर डीसी ने कॉस्ट कटिंग के नाम पर एसी ऑन करना बंद कर दिया है।'


    अफवाह उड़ाने में मशहूर bhaskar ये बताते है की ऐसा कोनो बात नहीं आप आप हल्ला न मचाये,

    nationaldastak बता रहा है की "मोदीराज में छीनी जा रही लोगों की नौकरियां, अगले तीन साल में 6 लाख लोग हो जाएंगे बेरोजगार" 

    खैर बाकि जो है सो हिये है, आप नमो नमो का जाब करे .. //हरि बोल // कुछ कहना चाहते हो तो निचे कमेन्ट बॉक्स बना है आप अपने ज्ञान से नवाज सकते है

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