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    1962 चीन के साथ युद्ध.


    अंग्रेजो से जब हम 1947 में आजाद हुए, हमारे खजाने में सिर्फ 46 करोड़ 90 हजार रुपए ही राशी बची थी. इन्हीं
    पैसों पर आजाद भारत की निंव रखी जानी थी... इतने बड़े देश को विकास पथ पर लाने के लिए यह राशी प्रयाप्त नहीं थी... नेहरू जी ने खजाने के पैसे और राजघरानों से आर्थिक मदत लेकर हजारों कारखानों का निर्माण किया.
    विदेशों में जाकर आधुनिक तकनीक का अध्यन करके हमारे किसानों को अच्छी फसलों के लिए प्रशिक्षण दिया.
    जब हमारा देश धीरे धीरे विकास की और बढ रहा था. तब संघ और जनसंघ ने नेहरू जी के कामों में टांग अडाना शुरू किया..






    क्योंकि उन्हें देश पर राज करना था.. जनसंघ के अध्यक्ष मूल बांग्लादेशी थे बाद में वह भारत आगये... तत्कालीन जनसंघ अध्यक्ष आचार्य देवप्रसाद घोष इन्हें अपने पार्टी को खडा करना था और नेहरू परिवार को हार का मूंह दिखाना था.. घोष बार बार चीनी लेबरेशन पार्टी के नेताओं के साथ मिलकर भारत पर आक्रमण करने की बात कहते थे ...1962 में हमारा देश चीन के साथ युद्ध के लिए सक्षम नहीं था.. नेहरू जी ने इस युद्ध से बचने के लिए चीनी नेताओं से संपर्क करते रहे.. लेकिन जनसंघ के अध्यक्ष ने नेहरू जी का सबक सिखाने की ठान ली थी...
    नेहरू जी के लाख कोशिशों पर भी चीन नहीं समझा..

    चीन को भारत पर विजय करके समूचे विश्व को अपनी ताकत दिखानी थी...
    जनसंघ ने हमारे हमारी कमजोरीयां चीन के साथ शेअर किये... सिर्फ सत्ता पाने के लिए जनसंघ ने हमारे देश को उस आग के गोले ढकेल दिया जिस गोले से हम 150 वर्षों बाद बाहर निकलने में कामयाब हुए थे...जनसंघ ने युद्ध करवाया तमाशा भी देखा और हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी के मौत के कारण भी बन गये... 1962 के हार से नेहरू जी बाहर निकल ही नहीं पाये.. उन्होंने अपने पूरी जिंदगी देश की आजादी में लगा दी थी..

    उन्ही के आंखो के सामने एक बार फिर देश एक भयानक युध्द से आर्थिक तौर पर कमजोर हुआ... यह बात उन्हें लगातार चुबती रही...चंद दिनों मे उनकी मृत्यु हुई.... उनके मृत्यु के तुरंत बाद संघ और जनसंघ में खुशी का माहौल बना.. उन्हें लग रहा था अब हमें सत्ता पाने से रोकने वाला कोई नहीं बचा. लेकिन इनकी चाल और इनके देशद्रोही कार्यों को जनता ने भांप लिया था..जिस सत्ता के लिए युद्ध करवाया उसके बाद भी वह सत्ता नहीं मिल पायी...






    क्योंकि हमारे पूर्वज आजके अंधभक्तो की तरह सोच नहीं रखते थे... कौन देशप्रेमी है और कौन देशद्रोही हैं... हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे... इनके लाख कोशिशों बाद भी इन्हें सत्ता सुख से वंचीत रहना पडा....
    46 करोड 90 हजार राशी से सुरवात करने वाला देश आज 17 लाख करोड़ का बजेट पेश करता है ..
    चड्डी फिर भी कांग्रेस से हिसाब पूछता है..

    कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाये गये... कुछ जिलास्तरीय नेता या राज्य मंत्री ने भ्रष्टाचार किया भी होगा लेकिन कोई कांग्रेसी आज तक तुम जैसा देशद्रोही नहीं बना इसी चीज का हमे गर्व है...
    जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष आचार्य देवप्रसाद घोष का 1985 कलकत्ता में मृत्यु हुआ... उन्होंने अपने आखरी क्षणो में अपने साथियों को कहा था मैंने जो गलती की थी तुम लोग मत करना वरना ना सत्ता मिलेगी ना इज्जत..
    लेकिन उनके साथियों ने उनसे सिख नही ली... कल का जनसंघ आज का भाजपा वहीं गलती कर रहा है जो घोष ने की थी.... हजारों दंगे कराये करोड़ों हिंदुओं को भ्रमित करके सत्ता तो पा लिए लेकिन तुम्हारा काला इतिहास कभी मिटने वाला नहीं है..






    भाजपा चुनाव जितने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है... हमे अपने पूर्वजों की तरह एकजूट होकर इनके हर चाल को मात देना है...भाजपा को हार का डर सता रहा है... फिर से कोई बड़ी घटना ना हो और बेकसूर लोग अपनी जान ना गंवा पाए...यही भगवान से प्राथना करता हूं .........
    धन्यवाद
    जय हिंद..

    विशाल गुप्ता

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