भारत छोड़ो आन्दोलन पार्ट १
भारत छोड़ो आन्दोलन
9 अगस्त, 1942 ई. को सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आह्वान पर प्रारम्भ हुआ था। भारत की आज़ादी
से सम्बन्धित इतिहास में दो पड़ाव सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नज़र आते हैं- प्रथम '1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम' और द्वितीय '1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन'। भारत को जल्द ही आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध यह एक बड़ा 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' था। 'क्रिप्स मिशन' की असफलता के बाद गाँधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया। इस आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया।
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स्वतंत्रता की महान लड़ाई
'भारत छोड़ो आन्दोलन' या 'अगस्त क्रान्ति भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन' की अन्तिम महान लड़ाई थी, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। क्रिप्स मिशन के ख़ाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपनी छले जाने का अहसास हुआ। दूसरी ओर दूसरे विश्वयुद्ध के कारण परिस्थितियाँ अत्यधिक गम्भीर होती जा रही थीं। जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर क़ब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ने लगा, दूसरी ओर युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाश बढ़ रहे थे, जिससे अंग्रेज़ सत्ता के ख़िलाफ़ भारतीय जनमानस में असन्तोष व्याप्त होने लगा था। जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई, 1942 ई. को गाँधी जी ने हरिजन में लिखा "अंगेज़ों! भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।"
क्रिप्स मिशन का आगमन
इस समय द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ चुका था, और इसमें ब्रिटिश फ़ौजों की दक्षिण-पूर्व एशिया में हार होने लगी थी। एक समय यह भी निश्चित माना जाने लगा कि जापान भारत पर हमला कर ही देगा। मित्र देश, अमेरिका, रूस व चीन ब्रिटेन पर लगातार दबाव डाल रहे थे, कि इस संकट की घड़ी में वह भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने के लिए पहल करें। अपने इसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए उन्होंने स्टेफ़ोर्ड क्रिप्स को मार्च, 1942 ई. में भारत भेजा। ब्रिटेन सरकार भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना नहीं चाहती थी। वह भारत की सुरक्षा अपने हाथों में ही रखना चाहती थी और साथ ही गवर्नर-जनरल के वीटो अधिकारों को भी पहले जैसा ही रखने के पक्ष में थी। भारतीय प्रतिनिधियों ने क्रिप्स मिशन के सारे प्रस्तावों को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया।
क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 'भारतीय नेशनल कांग्रेस कमेटी' की बैठक 8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई में हुई। इसमें यह निर्णय लिया गया कि अंग्रेज़ों को हर हाल में भारत छोड़ना ही पड़ेगा। भारत अपनी सुरक्षा स्वयं ही करेगा और साम्राज्यवाद तथा फ़ाँसीवाद के विरुद्ध रहेगा। यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ देते हैं, तो अस्थाई सरकार बनेगी। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' छेड़ा जाएगा और इसके नेता गाँधी जी होंगे।
9 अगस्त, 1942 ई. को सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आह्वान पर प्रारम्भ हुआ था। भारत की आज़ादी
से सम्बन्धित इतिहास में दो पड़ाव सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नज़र आते हैं- प्रथम '1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम' और द्वितीय '1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन'। भारत को जल्द ही आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध यह एक बड़ा 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' था। 'क्रिप्स मिशन' की असफलता के बाद गाँधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया। इस आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया।
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स्वतंत्रता की महान लड़ाई
'भारत छोड़ो आन्दोलन' या 'अगस्त क्रान्ति भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन' की अन्तिम महान लड़ाई थी, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। क्रिप्स मिशन के ख़ाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपनी छले जाने का अहसास हुआ। दूसरी ओर दूसरे विश्वयुद्ध के कारण परिस्थितियाँ अत्यधिक गम्भीर होती जा रही थीं। जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर क़ब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ने लगा, दूसरी ओर युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाश बढ़ रहे थे, जिससे अंग्रेज़ सत्ता के ख़िलाफ़ भारतीय जनमानस में असन्तोष व्याप्त होने लगा था। जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई, 1942 ई. को गाँधी जी ने हरिजन में लिखा "अंगेज़ों! भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।"
क्रिप्स मिशन का आगमन
इस समय द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ चुका था, और इसमें ब्रिटिश फ़ौजों की दक्षिण-पूर्व एशिया में हार होने लगी थी। एक समय यह भी निश्चित माना जाने लगा कि जापान भारत पर हमला कर ही देगा। मित्र देश, अमेरिका, रूस व चीन ब्रिटेन पर लगातार दबाव डाल रहे थे, कि इस संकट की घड़ी में वह भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने के लिए पहल करें। अपने इसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए उन्होंने स्टेफ़ोर्ड क्रिप्स को मार्च, 1942 ई. में भारत भेजा। ब्रिटेन सरकार भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना नहीं चाहती थी। वह भारत की सुरक्षा अपने हाथों में ही रखना चाहती थी और साथ ही गवर्नर-जनरल के वीटो अधिकारों को भी पहले जैसा ही रखने के पक्ष में थी। भारतीय प्रतिनिधियों ने क्रिप्स मिशन के सारे प्रस्तावों को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया।
क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 'भारतीय नेशनल कांग्रेस कमेटी' की बैठक 8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई में हुई। इसमें यह निर्णय लिया गया कि अंग्रेज़ों को हर हाल में भारत छोड़ना ही पड़ेगा। भारत अपनी सुरक्षा स्वयं ही करेगा और साम्राज्यवाद तथा फ़ाँसीवाद के विरुद्ध रहेगा। यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ देते हैं, तो अस्थाई सरकार बनेगी। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' छेड़ा जाएगा और इसके नेता गाँधी जी होंगे।