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    मेक इन इंडिया : टीपू के मेक इन मैसूर की कापी

    मेक इन इंडिया : टीपू के मेक इन मैसूर की कापी
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    सारे इतिहासकार उसके इन प्रयोगों की सफलता पर सहमत होते हैं. वो मानते हैं कि आज भी टीपू के सामाजिक-आर्थिक सुधार फल-फूल रहे हैं.भले ही आज टीपू को लेकर कितने भी भ्रम फैलाए जा रहे हों पर इस पंक्ति पर विश्वास करें - 'जो तथ्य है, वो सत्य है और सामने अभिव्यक्त है' तो एक तथ्य ये भी है कि टीपू सुल्तान उन कुछेक भारतीय शासकों में से है जो कि अंग्रेजों से ना डरे, ना उनके सामने रुके बल्कि अंग्रेजों का सामना करते हुए युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए

    टीपू सुल्तान के मुख्यमंत्री 'पुरनैय्या' एक हिंदू ब्राह्मण थे, उनके दरबार में बहुत से मुख्य अधिकारी हिंदू ही थे.टीपू ने कई हिंदू मंदिरों को संरक्षण दिया था. श्रीरंगपट्टन्नम में स्थित 'श्रीरंगनाथ का मंदिर' उनमें से एक है. 'श्रृंगेरी मठ' भी उनके संरक्षण में ही था जिसके स्वामी को उन्होंने 'जगद्गुरु' कहा.टीपू बाहर से आया कोई आक्रमणकारी नहीं था. टीपू इसी धरती का बेटा था. दक्षिण भारत में वो अपने खानदान की तीसरी पीढ़ी से था.आज लोग टीपू सुल्तान के शासन की तमाम तरह से व्याख्या करते हैं. कुछ उसे हिंदुओं का संरक्षक बताते हैं तो कुछ विरोधी. कुछ इस हद तक भी चले जाते हैं कि उसे कट्टर मुस्लिम और हिंदुओं का नरसंहार करने वाला कहते हैं.पर बता दें पर ये एक तथ्य है कि टीपू ने शासन के चिह्नों के रूप में बड़ी मात्रा में सूरज, शेर और हाथी का प्रयोग किया. जो साधारणत: हिंदू प्रतीक माने जाते हैं.

    टीपू को पश्चिमी विज्ञान और तकनीकी से बहुत लगाव था. उसने कई बंदूक बनाने वाले, इंजीनियर, घड़ी बनाने वाले घड़ीसाज और दूसरे तकनीकी विशेषज्ञों को फ्रांस से मैसूर बुलाया. उसने मैसूर में ही कांसे की तोप, गोले और बंदूकें बनानी शुरू कीं जिन पर 'मेड इन मैसूर' लिखा होता था.पाकिस्तान भी कहता है 'लव यू टीपू'
    पाकिस्तान में भी टीपू सुल्तान का सम्मान कम नहीं है. टीपू सुल्तान के नाम पर पाकिस्तान ने पाकिस्तान नेवी शिप का नाम 'पीएनएस टीपू सुल्तान' रखा था.भारत की ही तरह पाकिस्तान में भी टीपू पर टीवी सीरियल बन चुका है. इसके अलावा पाकिस्तानी पोस्टल सर्विसेज ने 1979 में अपनी आजादी के पुरोधा सीरीज में उसकी तस्वीर वाला डाक टिकट भी निकाला था.टीपू सुल्तान को ये बातें भी बनाती हैं खास..

    हाल में ही आई 'केट ब्रिटलबैंक' की किताब 'लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान' की माने तो टीपू सुल्तान अपने वक्त में ब्रिटेन में भारत का सबसे डरावना इंसान माना जाता था. माने ब्रिटेन में लोग उस वक्त उसका बहुत भय मानते थे इसीलिए जब टीपू की मौत हुई तो वहां पर खुशियां मनाई गईं.

    टीपू ही था जिसने अग्रेजों के शासन के खतरे को गहराई से भांपा था और इसके लिए उसने अंग्रेजों से चार युद्ध भी लड़े थे. यही कारण है कि उसे भारतीय उपमहाद्वीप का पहला 'फ्रीडम फाइटर' कहा जाता है.टीपू ने ऑटोमन और फ्रेंच सम्राटों के पास मदद की मांग के लिए दूत भेजे.टीपू ने 'ख्वाबनामा' नाम की एक किताब भी लिखी थी. इसमें वो अपने सपनों के बारे में लिखा करता था. वो इन सपनों को अपनी लड़ाइयों के नतीजों से जोड़कर तुलना करता था.टीपू ने बहुत सी लड़ाइयां लड़ीं. जिनमें अंग्रेजों से लड़ी चार बड़ी लड़ाइयां भी शामिल हैं. अपनी लड़ाइयों के बीच टीपू को जो थोड़ा सा शांति का वक्त मिला उस दौरान उसने कई समाजसुधार के काम भी किए.

    इनमें से एक था शराबबंदी.
    पालतू जानवरों और खेती का गहरा रिश्ता रहा है. टीपू सुल्तान ये बात समझते थे इसलिए उन्होंने जानवरों की अच्छी नस्लें तैयार करने पर भी खासा योगदान दिया. 'हल्लीकर' और 'अमृत महल' नस्ल की गायों की प्रजाति का विकास उनके इन कदमों का ही परिणाम माना जाता है.कहा जाता है कि देशी नस्ल की गायों का प्रयोग वो पहाड़ियों पर हथियार चढ़ाने में भी करते थे. यानी जिस गाय के नाम पर देशभर में आज नेता पॉलिटिक्स-पॉलिटिक्स खेल रहे हैं, उस गाय से टीपू का बड़ा ही खास रिश्ता था, मैसूर के कपड़े की पहचान है उसकी उत्कृष्टता. भारत में कुछ जगहों के कपड़े खास मशहूर हैं. उनमें मैसूर की साड़ियों की खास ही धमक है, पर जानते हैं, किसके चलते मैसूर के कपड़ों की धाक जमी? टीपू सुल्तान की वजह से.

    कुछ लोगों को बार बार खुदकुशी के ख्याल क्यों आते हैं उस वक्त के गजट से निकले तथ्य इसकी गवाही देते हैं. टीपू सुल्तान आज हमारे बीच नहीं हैं. नहीं हैं तब भी उनके नाम पर नेता पॉलिटिक्स खेल रहे हैं, होते तो भी शायद उन्हें नहीं बख्शते. टीपू की विरासत आज भी हमारे बीच सुरक्षित है.मैसूर के कपड़े को खास बनाने का श्रेय टीपू को ही जाता है जिसका आदेश मेक इन मैसूर था, तत्कालीन सरकार ने इसे कापी करके मेक इन इण्डिया कर दिया है।

    मैसूर क्षेत्र में रेशम के कीड़े पालने के व्यवसाय की शुरुआत टीपू ने ही करवाई थी. मैसूर गजट में ये बात दर्ज है.टीपू सुल्तान ने बंगाल से शहतूत के पेड़ लगाने की कला सीखी और अपने राज्य में 21 अलग-अलग केंद्रों पर इसकी ट्रेनिंग देनी शुरू की. आगे चलकर ये उद्योग मैसूर का सबसे प्रमुख उद्योग बना.आज सभी जानते हैं कि मैसूर का रेशम (सिल्क) देश भर में अपनी गुणवत्ता के चलते जाना जाता है. टीपू ने न सिर्फ बाहर से कपास के आयात पर रोक लगाई बल्कि इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि हर बुनकर को कपड़े तैयार करने के लिए अच्छी मात्रा में कपास मिलता रहे.टीपू ने गन्ने की खेती के लिए चीनियों की मदद ली, बड़ी मात्रा में मैसूर में गन्ने की खेती में भी टीपू सुल्तान का ही योगदान माना जाता है. गजट के हिसाब से इसकी खेती के लिए टीपू सुल्तान ने चीनी विशेषज्ञों की मदद ली थी. जिनके संरक्षण में अच्छी गुणवत्ता के गुड़ और शक्कर का उत्पादन होता था.
    टीपू द्वारा प्रख्यात श्रृंगेरी मठ को लिखे गए तकरीबन तीस पत्र इस बात की गवाही हैं कि टीपू को अपने राज्य की धार्मिक विविधता का अंदाजा था और वो सबका यकीन जीतने का हामी था.एक पत्र में तो टीपू अपने राज्य पर तीन शत्रुओं (हैदराबाद के निजाम, अंग्रेज और मराठों) का हवाला देकर मठ के स्वामी से अनुरोध करता है कि वे राज्य की विजय कामना के साथ शत चंडी और सहस्त्र चंडी यज्ञ करें. जिसके लिए आवश्यक सामग्री का इंतजाम राज्य की देख-रेख में किया गया.

    यह अनुष्ठान पूरे रीति-रिवाज के साथ संपन्न हुआ जिसमे ब्राह्मणों को उचित भेटें दी गईं और कई दिनों तक चलने वाले हवन में लगभग एक हजार ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन कराया गया.यही नहीं श्रृंगेरी मठ पर मराठा हमले के वक़्त टीपू हिंदू धर्म के रक्षक के तौर पर सामने आया. टीपू ने मराठा हमले से क्षतिग्रस्त मठ की मरम्मत कराई जिसमें शारदा देवी की मूर्ति भी शामिल थी.

    गौरतलब है कि मराठा सेनानायक परशुरामभाऊ को न ही मैसूर की हिंदू जनता और न ही हिंदू ज्ञान के महान केंद्र श्रृंगेरी के स्वामी ने हिंदू धर्मोद्धारक के रूप में देखा. ऐसे मौके पर उनकी नज़र अपने शासक सुल्तान टीपू की ओर थीं जिसने उन्हें निराश नहीं किया.

    यहां सुलतान द्वारा मठ के स्वामी को लिखे एक पत्र से उसके हिंदू धर्म और उसके धार्मिक संस्थानों के प्रति रुख का पता चलता है. 1793 के एक पत्र में टीपू लिखता है,आप जगद्गुरु हैं, विश्व के गुरु. आपने सदैव समस्त विश्व की भलाई के लिए और इसलिए कि लोग सुख से जी सकें कष्ट उठाए हैं. कृपया ईश्वर से हमारी समृद्धि की कामना करें. जिस किसी भी देश में आप जैसी पवित्र आत्माएं निवास करेंगी, अच्छी बारिश और फसल से देश की समृद्धि होगी.

    यहां एक बात स्पष्ट कर देना जरूरी है. आम मध्यकालीन या पूर्व-आधुनिक शासकों की तरह टीपू को न सिर्फ अपने राज्य की सुरक्षा करनी थी बल्कि उसका विस्तार करना भी उसकी प्राथमिकता था. इसलिए उसने मैसूर के आस-पास के इलाकों पर हमले किए और उनका मैसूर में विलय किया.

    सत्य दर्शन

    शेरे मैसूर टीपू सुल्तान की देश भक्ति पर वह लोग ज्ञान बाँट रहे हैं .., जिन के नेता सावरकर से ले कर अटल बिहारी बाजपेयी तक मांग चुके हैं अंग्रेज़ों से लिखित में माफ़ी ...! पूरा वीडियो देखने के लिए क्लिक करें और politicaltamashawithdrarshi … channel सब्सक्राइब करें


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