भारत छोड़ो आन्दोलन पार्ट २
भारत छोड़ो आन्दोलन
वर्धा प्रस्ताव
गाँधी जी ने कांग्रेस को अपने प्रस्ताव को न स्वीकार किये जाने की स्थिति में चुनौती देते हुए कहा कि "मैं देश की
बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दूंगा।" 14 जुलाई, 1942 ई. में कांग्रेस कार्यसमिति की वर्धा बैठक में गाँधी जी के इस विचार को पूर्ण समर्थन मिला कि भारत में संवैधनिक गतिरोध तभी दूर हो सकता है, जब अंग्रेज़ भारत से चले जायें। वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति ने 'अंग्रेज़ों भारत छोड़ो प्रस्ताव' पारित किया। आन्दोलन की सार्वजनिक घोषणा से पूर्व 1 अगस्त, 1942 ई. को इलाहाबाद में 'तिलक दिवस' मनाया गया। इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा- "हम आग से खेलने जा रहे हैं। हम दुधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं, जिसकी चोट उल्टी हमारे ऊपर भी पड़ सकती है।"
महात्मा गाँधी
अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक
आन्दोलन के दौरान 8 अगस्त, 1942 ई. को 'अखिल भारतीय कांग्रेस' की बैठक बम्बई के ऐतिहासिक 'ग्वालिया टैंक' में हुई। गाँधी जी के ऐतिहासिक 'भारत छोड़ो प्रस्ताव' को कांग्रेस कार्यसमिति ने कुछ संशोधनों के बाद 8 अगस्त, 1942 ई. की स्वीकार कर लिया। युद्ध की तेयारी में सहयोग देने के प्रस्ताव के साथ-साथ सरकार को तत्काल क़दम उठाने की चुनौती दी गयी। कहा गया कि "भारत की स्वतंत्रता की घोषणा के साथ एक स्थायी सरकार गठित हो जायगी और स्वतंत्र भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का एक मित्र बनेगा।" मुस्लिम लीग से वायदा किया गया कि ऐसा संविधान बनेगा, जिसमें संघ में शामिल होने वाली इकाइयों को अधिकाधिक स्वायत्तता मिलेगी और बचे हुए अधिकार उसी के पास रहेंगें। प्रस्ताव का अंतिम अंश था- "देश ने साम्राज्यवादी सरकार के विरुद्ध अपनी इच्छा ज़ाहिर कर दी है। अब उसे उस बिन्दु से लौटाने का बिल्कुल औचित्य नहीं है। अतः समिति अहिंसक ढंग से, व्यापक धरातल पर गाँधी जी के नेतृत्व में जनसंघर्ष शुरू करने का प्रस्ताव स्वीकार करती है।"
मूलमंत्र 'करो या मरो'
कांग्रेस के इस ऐतिहासिक सम्मेलन में महात्मा गाँधी ने लगभग 70 मिनट तक भाषण दिया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि "मैं आपको एक मंत्र देता हूँ, करो या मरो, जिसका अर्थ था- भारत की जनता देश की आज़ादी के लिए हर ढंग का प्रयत्न करे। गाँधी जी के बारे में भोगराजू पट्टाभि सीतारामैया ने लिखा है कि "वास्तव में गाँधी जी उस दिन अवतार और पैगम्बर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे।" 'वह लोग जो कुर्बानी देना नहीं जानते, वे आज़ादी प्राप्त नहीं कर सकते।' भारत छोड़ो आन्दोलन का मूल भी इसी भावना से प्रेरित था। गाँधी जी वैसे तो अहिंसावादी थे, मगर देश को आज़ाद करवाने के लिए उन्होंने 'करो या मरो' का मूल मंत्र दिया। अंग्रेज़ी शासकों की दमनकारी, आर्थिक लूट-खसूट, विस्तारवादी एवं नस्लवादी नीतियों के विरुद्ध उन्होंने लोगों को क्रमबद्ध करने के लिए 'भारत छोड़ो आन्दोलन' छेड़ा था। गाँधीजी ने कहा था कि-
"एक देश तब तक आज़ाद नहीं हो सकता, जब तक कि उसमें रहने वाले लोग एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते।"
गाँधी जी के इन शब्दों ने भारत की जनता पर जादू-सा असर डाला और वे नये जोश, नये साहस, नये संकल्प, नई आस्था, दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास के साथ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। देश के कोने-कोने में 'करो या मरो' की आवाज़ गुंजायमान हो उठी, और चारों ओर बस यही नारा श्रमण होने लगा। #c n p ravi
नेताओं की गिरफ़्तारी
9 अगस्त को भोर में ही 'ऑपरेशन ज़ीरो ऑवर' के तहत कांग्रेस के सभी महत्त्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिये गये। गाँधी जी को पूना के 'आगा ख़ाँ महल' में तथा कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया। कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर ब्रिटिश सरकार ने इस संस्था की सम्पत्ति को जब्त कर लिया और साथ में जुलूसों को प्रतिबंधित कर दिया। सरकार के इस कृत्य से जनता में आक्रोश व्याप्त हो गया। जनता ने स्वयं अपना नेतृत्व संभाल कर जुलूस निकाला और सभाऐं कीं। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान यह पहला आन्दोलन था, जो नेतृत्व विहीनता के बाद भी उत्कर्ष पर पहुँचा। सरकार ने जब आन्दोलन को दबाने के लिए लाठी और बंन्दूक का सहारा लिया तो आन्दोलन का रूख बदलकर हिसात्मक हो गया। अनेक स्थानों पर रेल की पटरियाँ उखाड़ी गईं और स्टेशनों में आग लगा दी गई। बम्बई, अहमदाबाद एवं जमशेदपुर में मज़दूरों ने संयुक्त रूप से विशाल हड़ताल कीं।
वर्धा प्रस्ताव
गाँधी जी ने कांग्रेस को अपने प्रस्ताव को न स्वीकार किये जाने की स्थिति में चुनौती देते हुए कहा कि "मैं देश की
बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दूंगा।" 14 जुलाई, 1942 ई. में कांग्रेस कार्यसमिति की वर्धा बैठक में गाँधी जी के इस विचार को पूर्ण समर्थन मिला कि भारत में संवैधनिक गतिरोध तभी दूर हो सकता है, जब अंग्रेज़ भारत से चले जायें। वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति ने 'अंग्रेज़ों भारत छोड़ो प्रस्ताव' पारित किया। आन्दोलन की सार्वजनिक घोषणा से पूर्व 1 अगस्त, 1942 ई. को इलाहाबाद में 'तिलक दिवस' मनाया गया। इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा- "हम आग से खेलने जा रहे हैं। हम दुधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं, जिसकी चोट उल्टी हमारे ऊपर भी पड़ सकती है।"
महात्मा गाँधी
अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक
आन्दोलन के दौरान 8 अगस्त, 1942 ई. को 'अखिल भारतीय कांग्रेस' की बैठक बम्बई के ऐतिहासिक 'ग्वालिया टैंक' में हुई। गाँधी जी के ऐतिहासिक 'भारत छोड़ो प्रस्ताव' को कांग्रेस कार्यसमिति ने कुछ संशोधनों के बाद 8 अगस्त, 1942 ई. की स्वीकार कर लिया। युद्ध की तेयारी में सहयोग देने के प्रस्ताव के साथ-साथ सरकार को तत्काल क़दम उठाने की चुनौती दी गयी। कहा गया कि "भारत की स्वतंत्रता की घोषणा के साथ एक स्थायी सरकार गठित हो जायगी और स्वतंत्र भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का एक मित्र बनेगा।" मुस्लिम लीग से वायदा किया गया कि ऐसा संविधान बनेगा, जिसमें संघ में शामिल होने वाली इकाइयों को अधिकाधिक स्वायत्तता मिलेगी और बचे हुए अधिकार उसी के पास रहेंगें। प्रस्ताव का अंतिम अंश था- "देश ने साम्राज्यवादी सरकार के विरुद्ध अपनी इच्छा ज़ाहिर कर दी है। अब उसे उस बिन्दु से लौटाने का बिल्कुल औचित्य नहीं है। अतः समिति अहिंसक ढंग से, व्यापक धरातल पर गाँधी जी के नेतृत्व में जनसंघर्ष शुरू करने का प्रस्ताव स्वीकार करती है।"
मूलमंत्र 'करो या मरो'
कांग्रेस के इस ऐतिहासिक सम्मेलन में महात्मा गाँधी ने लगभग 70 मिनट तक भाषण दिया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि "मैं आपको एक मंत्र देता हूँ, करो या मरो, जिसका अर्थ था- भारत की जनता देश की आज़ादी के लिए हर ढंग का प्रयत्न करे। गाँधी जी के बारे में भोगराजू पट्टाभि सीतारामैया ने लिखा है कि "वास्तव में गाँधी जी उस दिन अवतार और पैगम्बर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे।" 'वह लोग जो कुर्बानी देना नहीं जानते, वे आज़ादी प्राप्त नहीं कर सकते।' भारत छोड़ो आन्दोलन का मूल भी इसी भावना से प्रेरित था। गाँधी जी वैसे तो अहिंसावादी थे, मगर देश को आज़ाद करवाने के लिए उन्होंने 'करो या मरो' का मूल मंत्र दिया। अंग्रेज़ी शासकों की दमनकारी, आर्थिक लूट-खसूट, विस्तारवादी एवं नस्लवादी नीतियों के विरुद्ध उन्होंने लोगों को क्रमबद्ध करने के लिए 'भारत छोड़ो आन्दोलन' छेड़ा था। गाँधीजी ने कहा था कि-
"एक देश तब तक आज़ाद नहीं हो सकता, जब तक कि उसमें रहने वाले लोग एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते।"
गाँधी जी के इन शब्दों ने भारत की जनता पर जादू-सा असर डाला और वे नये जोश, नये साहस, नये संकल्प, नई आस्था, दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास के साथ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। देश के कोने-कोने में 'करो या मरो' की आवाज़ गुंजायमान हो उठी, और चारों ओर बस यही नारा श्रमण होने लगा। #c n p ravi
नेताओं की गिरफ़्तारी
9 अगस्त को भोर में ही 'ऑपरेशन ज़ीरो ऑवर' के तहत कांग्रेस के सभी महत्त्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिये गये। गाँधी जी को पूना के 'आगा ख़ाँ महल' में तथा कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया। कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर ब्रिटिश सरकार ने इस संस्था की सम्पत्ति को जब्त कर लिया और साथ में जुलूसों को प्रतिबंधित कर दिया। सरकार के इस कृत्य से जनता में आक्रोश व्याप्त हो गया। जनता ने स्वयं अपना नेतृत्व संभाल कर जुलूस निकाला और सभाऐं कीं। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान यह पहला आन्दोलन था, जो नेतृत्व विहीनता के बाद भी उत्कर्ष पर पहुँचा। सरकार ने जब आन्दोलन को दबाने के लिए लाठी और बंन्दूक का सहारा लिया तो आन्दोलन का रूख बदलकर हिसात्मक हो गया। अनेक स्थानों पर रेल की पटरियाँ उखाड़ी गईं और स्टेशनों में आग लगा दी गई। बम्बई, अहमदाबाद एवं जमशेदपुर में मज़दूरों ने संयुक्त रूप से विशाल हड़ताल कीं।