भारत छोड़ो आन्दोलन पार्ट ३
भारत छोड़ो आन्दोलन
संयुक्त प्रांत में बलिया एवं बस्ती, बम्बई में सतारा, बंगाल में मिदनापुर एवं बिहार के कुछ भागों में 'भारत छोड़ो
आन्दोलन' के समय अस्थायी सरकारों की स्थापना की गयी। इन स्वाशासित समानान्तर सरकारों में सर्वाधिक लम्बे समय तक सरकार सतारा तक थी। यहाँ पर विद्रोह का नेतृत्व नाना पाटिल ने किया था। सतारा के सबसे महत्त्वपूर्ण नेता वाई.बी. चाह्नाण थे। पहली समान्तर सरकार बलिया में चितू पाण्डेय के नेतृत्व में बनी।
बंगाल के मिदनापुर ज़िले में तामलुक अथवा ताम्रलिप्ति में गठिन राष्ट्रीय सरकार 1944 ई. तक चलती रही। यहाँ की सरकार को जातीय सरकार के नाम से जाना जाता है। सतीश सावंत के नेतृत्व में गठित इस जातीय सरकार ने स्कूलों को अनुदान दिये और 'सशस्त्र विद्युत वाहिनी सैन्य संगठन' बनाया। इस आन्दोलन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र थे- बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मद्रास एवं बम्बई। जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया एवं अरुणा असिफ़ अली जैसे नेताओं ने भूमिगत रहकर इस आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया। बम्बई में उषा मेहता एवं उनके कुछ साथियों ने कई महीने तक कांग्रेस रेडियो का प्रसारण किया। राममनोहर लोहिया नियमित रूप से रेडियो पर बोलते थे। नवम्बर 1942 ई. में पुलिस ने इसे खोज निकाला और जब्त कर लिया।
गाँधी जी का प्रभाव
'भारत छोड़ो आन्दोलन' मूल रूप से एक जनांदोलन था, जिसमें भारत का हर जाति वर्ग का व्यक्ति शामिल था। इस आन्दोलन ने युवाओं को एक बहुत बड़ी संख्या में अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। युवाओं ने अपने कॉलेज छोड़ दिये और वे जेल का रास्ता अपनाने लगे। जिस दौरान कांग्रेस के नेता जेल में थे, ठीक इसी समय मोहम्मद अली जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी अपना प्रभाव क्षेत्र फ़ैलाने में लग गये। इसी वर्ष में मुस्लिम लीग को पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाने का मौक़ा मिला, जहाँ पर उसकी अभी तक कोई ख़ास पहचान नहीं थी। जून 1944 ई. में जब विश्वयुद्ध समाप्ति की ओर था, गाँधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच फ़ासले को पाटने के लिए जिन्ना के साथ कई बार मुलाकात की और उन्हें समझाने का प्रयत्न किया। इसी समय 1945 ई. में ब्रिटेन में 'लेबर पार्टी' की सरकार बन गई। यह सरकार पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थी। उसी समय वायसराय लॉर्ड वेवेल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकों का आयोजन किया।
आन्दोलन की आलोचना
तत्कालीन भारतीय राजनीतिक दलों में 'साम्यवादी दल' ने इस आन्दोलन की आलोचना की। मुस्लिम लीग ने भी 'भारत में छोड़ो आन्दोलन' की आलोचना करते हुए कहा कि "आन्दोलन का लक्ष्य भारतीय स्वतन्त्रता नहीं, वरन भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करना है, इस कारण यह आन्दोलन मुसलमानों के लिए घातक है।" मुस्लिम लीग तथा उदारवादियों को भी यह आन्दोलन नहीं भाया। सर तेज़बहादुर सप्रू ने इस प्रस्ताव को 'अविचारित तथा असामयिक' बताया। भीमराव अम्बेडकर ने इसे 'अनुत्तरदायित्व पूर्ण और पागलपन भरा कार्य' बताया। 'हिन्दू महासभा' एवं 'अकाली आन्दोलन' ने भी इसकी आलोचना की। यह आन्दोलन संगठन एवं आयोजन में कमी, सरकारी सेवा में कार्यरत उच्चाधिकारियों की वफ़ादारी व आन्दोलनकारियों के पास साधन एवं शक्ति के अभाव के कारण पूर्ण रूप में सफल नहीं हो सका।
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केबिनेट मिशन की असफलता
गाँधी जी ने 'भारत छोड़ो आन्दोलन' को बहुत ही सुनियोजित ढंग से चलाने की रूपरेखा तैयार की थी। उन्होंने कहा, 'हम या तो भारत को आज़ाद करवाएंगे या इस कोशिश में मिट जाएंगे।' भारत में 1946 ई. के प्रारम्भ में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए सिरे से चुनाव सम्पन्न हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई। मुस्लिमों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। इसी समय 1946 ई. की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत पहुँचा। मिशन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राज़ी करने की कोशिश की, जिसमें भारत के अन्दर विभिन्न प्रांतों को सीमित स्वायत्तता दी जाये। लेकिन कैबिनेट मिशन का यह प्रयास असफल सिद्ध हुआ। इस मिशन के असफल हो जाने के कारण जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में एक प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस का ऐलान किया। 16 अगस्त, 1946 ई. का दिन इसके लिये नियत किया गया था, लेकिन उसी दिन कलकत्ता में संघर्ष शुरू हो गया। यह हिंसा कलकत्ता से प्रारम्भ होकर बंगाल, बिहार और पंजाब तक फैल गई। कई स्थानों पर हिन्दू, तो कई स्थानों पर मुस्लिमों को निशाना बनाया गया।
संयुक्त प्रांत में बलिया एवं बस्ती, बम्बई में सतारा, बंगाल में मिदनापुर एवं बिहार के कुछ भागों में 'भारत छोड़ो
आन्दोलन' के समय अस्थायी सरकारों की स्थापना की गयी। इन स्वाशासित समानान्तर सरकारों में सर्वाधिक लम्बे समय तक सरकार सतारा तक थी। यहाँ पर विद्रोह का नेतृत्व नाना पाटिल ने किया था। सतारा के सबसे महत्त्वपूर्ण नेता वाई.बी. चाह्नाण थे। पहली समान्तर सरकार बलिया में चितू पाण्डेय के नेतृत्व में बनी।
बंगाल के मिदनापुर ज़िले में तामलुक अथवा ताम्रलिप्ति में गठिन राष्ट्रीय सरकार 1944 ई. तक चलती रही। यहाँ की सरकार को जातीय सरकार के नाम से जाना जाता है। सतीश सावंत के नेतृत्व में गठित इस जातीय सरकार ने स्कूलों को अनुदान दिये और 'सशस्त्र विद्युत वाहिनी सैन्य संगठन' बनाया। इस आन्दोलन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र थे- बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मद्रास एवं बम्बई। जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया एवं अरुणा असिफ़ अली जैसे नेताओं ने भूमिगत रहकर इस आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया। बम्बई में उषा मेहता एवं उनके कुछ साथियों ने कई महीने तक कांग्रेस रेडियो का प्रसारण किया। राममनोहर लोहिया नियमित रूप से रेडियो पर बोलते थे। नवम्बर 1942 ई. में पुलिस ने इसे खोज निकाला और जब्त कर लिया।
गाँधी जी का प्रभाव
'भारत छोड़ो आन्दोलन' मूल रूप से एक जनांदोलन था, जिसमें भारत का हर जाति वर्ग का व्यक्ति शामिल था। इस आन्दोलन ने युवाओं को एक बहुत बड़ी संख्या में अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। युवाओं ने अपने कॉलेज छोड़ दिये और वे जेल का रास्ता अपनाने लगे। जिस दौरान कांग्रेस के नेता जेल में थे, ठीक इसी समय मोहम्मद अली जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी अपना प्रभाव क्षेत्र फ़ैलाने में लग गये। इसी वर्ष में मुस्लिम लीग को पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाने का मौक़ा मिला, जहाँ पर उसकी अभी तक कोई ख़ास पहचान नहीं थी। जून 1944 ई. में जब विश्वयुद्ध समाप्ति की ओर था, गाँधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच फ़ासले को पाटने के लिए जिन्ना के साथ कई बार मुलाकात की और उन्हें समझाने का प्रयत्न किया। इसी समय 1945 ई. में ब्रिटेन में 'लेबर पार्टी' की सरकार बन गई। यह सरकार पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थी। उसी समय वायसराय लॉर्ड वेवेल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकों का आयोजन किया।
आन्दोलन की आलोचना
तत्कालीन भारतीय राजनीतिक दलों में 'साम्यवादी दल' ने इस आन्दोलन की आलोचना की। मुस्लिम लीग ने भी 'भारत में छोड़ो आन्दोलन' की आलोचना करते हुए कहा कि "आन्दोलन का लक्ष्य भारतीय स्वतन्त्रता नहीं, वरन भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करना है, इस कारण यह आन्दोलन मुसलमानों के लिए घातक है।" मुस्लिम लीग तथा उदारवादियों को भी यह आन्दोलन नहीं भाया। सर तेज़बहादुर सप्रू ने इस प्रस्ताव को 'अविचारित तथा असामयिक' बताया। भीमराव अम्बेडकर ने इसे 'अनुत्तरदायित्व पूर्ण और पागलपन भरा कार्य' बताया। 'हिन्दू महासभा' एवं 'अकाली आन्दोलन' ने भी इसकी आलोचना की। यह आन्दोलन संगठन एवं आयोजन में कमी, सरकारी सेवा में कार्यरत उच्चाधिकारियों की वफ़ादारी व आन्दोलनकारियों के पास साधन एवं शक्ति के अभाव के कारण पूर्ण रूप में सफल नहीं हो सका।
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केबिनेट मिशन की असफलता
गाँधी जी ने 'भारत छोड़ो आन्दोलन' को बहुत ही सुनियोजित ढंग से चलाने की रूपरेखा तैयार की थी। उन्होंने कहा, 'हम या तो भारत को आज़ाद करवाएंगे या इस कोशिश में मिट जाएंगे।' भारत में 1946 ई. के प्रारम्भ में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए सिरे से चुनाव सम्पन्न हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई। मुस्लिमों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। इसी समय 1946 ई. की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत पहुँचा। मिशन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राज़ी करने की कोशिश की, जिसमें भारत के अन्दर विभिन्न प्रांतों को सीमित स्वायत्तता दी जाये। लेकिन कैबिनेट मिशन का यह प्रयास असफल सिद्ध हुआ। इस मिशन के असफल हो जाने के कारण जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में एक प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस का ऐलान किया। 16 अगस्त, 1946 ई. का दिन इसके लिये नियत किया गया था, लेकिन उसी दिन कलकत्ता में संघर्ष शुरू हो गया। यह हिंसा कलकत्ता से प्रारम्भ होकर बंगाल, बिहार और पंजाब तक फैल गई। कई स्थानों पर हिन्दू, तो कई स्थानों पर मुस्लिमों को निशाना बनाया गया।