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    चक्रवर्ती राजगोपालाचारी गाँधी जी का सान्निध्य


    वर्ष 1915 में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से लौट कर भारत आये थे और आते ही देश के स्वतंत्रता संग्राम को गति
    प्रदान करने में जुट गये थे। चक्रवर्ती भी देश के हालात से अनभिज्ञ नहीं थे, वह वकालत में उत्कर्ष पर थे। 1919 में गाँधी जी ने रॉलेक्ट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया। इसी समय राजगोपालाचारी गाँधी जी के सम्पर्क में आये और उनके राष्ट्रीय आन्दोलन के विचारों से प्रभावित हुए। गाँधी जी ने पहली भेंट में उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनसे मद्रास में सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व करने का आह्वान किया।

    चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
    उन्होंने पूरे जोश से मद्रास सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व किया और गिरफ्तार होकर जेल गये। जेल से छूटते ही चक्रवर्ती ने अपनी वकालत और तमाम सुख सुविधाओं को त्याग दिया और पूर्ण रूप से देश के स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित हो गये। सन् 1921 में गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह आरंभ किया। इसी वर्ष वह कांग्रेस के सचिव भी चुने गये। इस आन्दोलन के तहत उन्होंने जगजागरण के लिए पदयात्रा की और वेदयासम के सागर तट पर नमक क़ानून का उल्लंघन किया। परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर पुन: जेल भेज दिया गया। इस समय तक चक्रवर्ती देश की राजनीति और कांग्रेस में इतना ऊँचा क़द प्राप्त कर चुके थे कि गाँधी जी जैसे नेता भी प्रत्येक कार्य में उनकी राय लेते थे। वे स्पष्ट कहते थे 'राजा जी ही मेरे सच्चे अनुयायी हैं।' यद्यपि कई अवसर ऐसे भी आये, जब चक्रवर्ती गाँधी और कांग्रेस के विरोध में आ खड़े हुए, किंतु इसे भी उनकी दूरदर्शिता, उनकी कूटनीति का ही एक अंग समझकर उनका समर्थन ही किया गया।
    असहयोग आन्दोलन

    1930 - 31 में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। चक्रवर्ती ने इस आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। वह जेल भी गये, किंतु कुछ मुद्दों पर वे कांग्रेस के बड़े बड़े नेताओं के विरोध में निडरता से आ खड़े हुए। वह अपने सिद्धांतों के आगे किसी से भी किसी प्रकार के समझौते के लिए तैयार नहीं होते थे। वह अकारण ही अपने सिद्धांतों पर नहीं अड़ते थे, प्राय: जिन मसलों पर अन्य नेतागण उनका विरोध करते थे, बाद में वे सहज रूप से उन्हीं मसलों पर राजा जी के दृष्टिकोण से सहमत हो जाते थे। चक्रवर्ती जी की सूझबूझ और राजनीतिक कुशलता का उदाहरण देखने को मिलता है, जब 1931 -32 में हरिजनों के पृथक मताधिकार को लेकर गाँधी जी और भीमराव अंबेडकर के बीच मतभेद उत्पन्न हो गये थे। एक ओर जहाँ गाँधी जी इस संदर्भ में अनशन पर बैठ गये थे, वहीं अंबेडकर भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे। उस समय चक्रवर्ती ने उन दोंनों के बीच बड़ी ही चतुराई से समझौता कराकर विवाद को शांत कराया था।

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