सोनिया गाँधी का राजनीतिक जीवन
संस्था अध्यक्ष
1991 में अपने पति की हत्या के बाद उन्होंने 'राजीव गाँधी फाउंडेशन' और इसकी सहयोगी संस्था 'राजीव गाँधी
इन्स्टीट्यूट फ़ॉर कन्टेम्प्रेरी स्टडीज़' की स्थापना की। इन संस्थाओं के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने पति की वैचारिक विरासत को आगे बढ़ाने में सक्रिय योगदान किया। साथ ही वे और भी अन्य गैर सरकारी संस्थाओं की अध्यक्ष हैं।
सोनिया गाँधी का राजनीतिक जीवन
पति की हत्या होने के पश्चात कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना सोनिया गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी नफ़रत और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में क़दम नहीं रखूँगी। काफ़ी समय तक राजनीति में क़दम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। 'पी वी नरसिंहाराव' के कमज़ोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई और उसके बाद 'सीताराम केसरी' के कांग्रेस के कमज़ोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता जा रहा था जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गाँधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। 1997 में कोलकाता में कांग्रेस के सम्मेलन में आख़िरकार वह कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हो गईं। उनके दबाव में सोनिया गाँधी ने 1997 में कोलकाता के 'प्लेनरी सेशन' में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की नाक़ामयाब कोशिश भी की। राजनीति में क़दम रखने के बाद उनका विदेशी होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोडा और इन मुद्दों को नकारते रहे।
1991 में अपने पति की हत्या के बाद उन्होंने 'राजीव गाँधी फाउंडेशन' और इसकी सहयोगी संस्था 'राजीव गाँधी
इन्स्टीट्यूट फ़ॉर कन्टेम्प्रेरी स्टडीज़' की स्थापना की। इन संस्थाओं के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने पति की वैचारिक विरासत को आगे बढ़ाने में सक्रिय योगदान किया। साथ ही वे और भी अन्य गैर सरकारी संस्थाओं की अध्यक्ष हैं।
सोनिया गाँधी का राजनीतिक जीवन
पति की हत्या होने के पश्चात कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना सोनिया गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी नफ़रत और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में क़दम नहीं रखूँगी। काफ़ी समय तक राजनीति में क़दम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। 'पी वी नरसिंहाराव' के कमज़ोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई और उसके बाद 'सीताराम केसरी' के कांग्रेस के कमज़ोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता जा रहा था जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गाँधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। 1997 में कोलकाता में कांग्रेस के सम्मेलन में आख़िरकार वह कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हो गईं। उनके दबाव में सोनिया गाँधी ने 1997 में कोलकाता के 'प्लेनरी सेशन' में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की नाक़ामयाब कोशिश भी की। राजनीति में क़दम रखने के बाद उनका विदेशी होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोडा और इन मुद्दों को नकारते रहे।