माउंटबेटन की बीवी को एयर इंडिया के विमान से लव लेटर भेजते थे नेहरू
ये संघ समर्थित लोगो की फितरत है गाँधी खानदान, नेहरु खानदान से पंगा लेना अभी ये लेख पड़ रहा था कोई "इंडिया संवाद है उनकी ये पोस्ट
आज हर तरफ नेहरु जी की पुण्य तिथि पर बहुत लोगो के लेख पड़ने को मिले, सब पोसिटिव ही थे बस ये अपन्दित जी निगेटिव दिखे की इनकी सोच ही ऐसी है
माउंटबेटन की बीवी को एयर इंडिया के विमान से लव लेटर भेजते थे नेहरू
27 मई 1964। इसी दिन पं. नेहरू ने आखिरी सांस ली। पुण्यतिथि के इस मौके पर उनकी जिंदगी के एक चर्चित किस्से के बारे में जानिए।
आप इस पोस्ट के लेखक है पंडित जी , सही माने तो कान के नीचे चार मारने का जब कोई शिकायत करे कि मोदीजी ने तीन साल में कुछ नही किया है। तीन साल में भारत के इतिहास में इतने सारे भाषण किसने दिया?
नई दिल्लीः देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। इन कहानियों पर इसलिए भरोसा बनता है कि इसका नेहरू के करीबियों ने रहस्योद्घाटन किया है। नेहरू से जुड़ी सबसे चर्चित कहानी है उनकी हिंदुस्तान के अंतिम वायसराय एडविना माउंटबेटन के बीच मोहब्बत की कहानी। दोनों एक दूसरे के गहरे प्यार में थे। आजादी के बाद भी जब माउंटबेटन इंग्लैंड चलीं गईं तब भी नेहरू से मिलने साल भर में एक बार जरूर दिल्ली आतीं रहीं। उन्हें तीन मूर्ति रोड स्थित भवन में सरकारी मेहमान के तौर पर ठहराया जाता था। जहां नेहरू से उनकी मुलाकात होती थी। खास बात है कि माउंटबेटन को भी पता था कि उनकी पत्नी के रिश्ते नेहरू से हैं।
इए पंडित जी को पता नहीं है शायद की कोई बंभना जब यूरोप या अमरीका जाता है, अपनी सारी हेकड़ी भूल जाता है. ज़रूरी नहीं कि कोई रास्ते में उसे पीट दे - यह संभावना भारत में ज़्यादा है - लेकिन नज़रें बहुत कुछ कहती हैं. कुछ प्यारे दोस्त भी मिल जाते हैं, जो कहते हैं : कुछ भी हो, तुम एक इन्सान तो हो.
तभी राकेश कायस्थ जी की ये पोस्ट दिखी , लेकिन संघियों के डर से पंडितजी के रौशनदान से लटकता प्रचारक
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प्रिय प्रचारक, तुम हो राष्ट्र तारक। करते हो देश की बड़ी भलाई, लेकिन एक बात अब तक समझ नहीं आई। इतिहास के कूड़ेदान में क्यों भटक रहे हो। 53 साल हो गये नेहरू को गये, लेकिन अब भी तुम तीनमूर्ति का रौशनदान पकड़े लटक रहे हो! माना हर बेडरूम में झांकना तुम्हारा अधिकार है। लेकिन आखिर एक मरे हुए आदमी से तुम्हे क्यों इस कदर प्यार है?
53 साल में वक्त कहां से कहां पहुंच गया। कांग्रेस इस देश से गुल हो गई, तुम्हारी चड्डी हाफ से फुल हो गई। माना कि नेहरू ने कभी एडविना के लिए सिगरेट सुलगाई थी। लेकिन उस सिगरेट को बुझे तो आधी सदी से ज्यादा हो गये, तुम अब तक क्यों सुलग रहे हो? निजी रिश्तों को लेकर तुम बहुत जिज्ञासु हो। तुम्हे लेकर मेरी भी कुछ जिज्ञासाएं हैं। प्रधानमंत्री जी तो मन की बात सुनाते हैं, लेकिन तुम अपने मन की आंखों से इतना सबकुछ कैसे देख पाते हो। बिना किसी स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के एक मरे हुए आदमी की अलग-अलग मुद्राओं में इतनी तस्वीरे कैसे बनाते हो? आखिर कौन सी ऐसी कुंठा है, जो तुम्हे एक मरे हुए आदमी के रौशनदान से इस तरह लटके रहने को मजबूर करती हैं?
क्या यह गुरुजी को पंडितजी से उचित मान ना मिलने की पीड़ा है? कहीं दर्द इस बात का तो नहीं कि पूर्वज बेचारे तो कुंवारे मर गये और जिंदगी के सारे मजे वह कश्मीरी पंडित अकेले लूट गया।लेकिन वो तो गुजरी बात हो गई, उसपर कैसा शोक करना। ये मामला कुछ ऐसा है कि दादाजी को किसी कन्या ने घास ने डाली तो बदला लेने को बेताब पोते ने किसी पड़ोसी बुजुर्ग के मुंह पर कालिख मल दिया।
मुझे अंदाज़ा है कि मेरी बातें तुम्हे बहुत बुरी लग रही होंगी क्योंकि तुम्हे चरित्र निर्माण की शिक्षा मिली हुई है। लेकिन क्या तुमने कभी अपने सबसे महान नेता का चरित्र पढ़ने की जहमत उठाई है जो उनके एक और महान वरिष्ठ सहकर्मी मधोक जी लिख गये हैं। तुम्हे उन कथाओं में फोटोशॉप की अनंत संभावनाएं नज़र आएंगी। जानना चाहोगे कि पूरा देश कभी उन महान `प्रेरक प्रसंगों’ की चर्चा क्यों नहीं करता, जिस तरह तुम पंडितजी की करते हो, क्योंकि यह देश मूलत: सभ्य सुसंस्कृत और शालीन लोगो का देश है। पूछने वाले पूछ सकते थे कि तुमने अपनी चड्ढी रौशनदान में लटके-लटके बदली या थोड़ी देर के लिए नीचे भी आये थे। लेकिन क्या किसी ने ऐसा पूछा?
बुरा मत मानना भइया, निजी जिंदगियों में ताक-झांक करना तुम्हारे अपने संस्कारों का हिस्सा है। अपनी पार्टी कवर करने वाले किसी भी जानकार पत्रकार से पूछ लो पता चल जाएगा कि परिवार के कोटे से पार्टी के महासचिव बने जोशीजी की करियर डुबोने के लिए उनकी कथित सेक्स सीडी किसने बनवाई और किसने बंटवाई। उमा और गोविंद के नितांत निजी संबंधों के किस्से किसने उछाले और उन्हे असह्य मानसिक प्रताड़ना किन लोगो ने दी। नैतिकता की सारी ठेकेदारियां तुम्हारे पास हैं, लेकिन तुमने तो अपनो तक को नहीं बख्शा गैरो की क्या बात करें। व्यक्ति कितना बड़ा योगी क्यों ना हो 53 साल तक रौशनदान से लटके-लटके उसके हाथ ज़रूर दुखेंगे। की होल में आगे गड़ाये-गड़ाये गर्दन ज़रूर अकड़ गई होगी। इसलिए मेरा आग्रह है, नीचे उतर आओ भइया।
देखो देश का माहौल कितना अच्छा है। पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक हो गया। कालधन भी खत्म हो गया। हमारा विकास अब छोटा भीम बन चुका है। मिलोगे नहीं उससे एक बार? आ जाओ भइया एक बार। फिर से लटकना चाहो तो लटक जाना, रोकने वाला मैं कौन होता हूं।तुमसे इससे ज्यादा होने वाला भी नहीं है
-- अजय गंगवार (IAS, मध्यप्रदेश) की फेसबुक पोस्ट। Rajeev Mittal जी की वॉल से साभार।
आज हर तरफ नेहरु जी की पुण्य तिथि पर बहुत लोगो के लेख पड़ने को मिले, सब पोसिटिव ही थे बस ये अपन्दित जी निगेटिव दिखे की इनकी सोच ही ऐसी है
माउंटबेटन की बीवी को एयर इंडिया के विमान से लव लेटर भेजते थे नेहरू
27 मई 1964। इसी दिन पं. नेहरू ने आखिरी सांस ली। पुण्यतिथि के इस मौके पर उनकी जिंदगी के एक चर्चित किस्से के बारे में जानिए।
आप इस पोस्ट के लेखक है पंडित जी , सही माने तो कान के नीचे चार मारने का जब कोई शिकायत करे कि मोदीजी ने तीन साल में कुछ नही किया है। तीन साल में भारत के इतिहास में इतने सारे भाषण किसने दिया?
नई दिल्लीः देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। इन कहानियों पर इसलिए भरोसा बनता है कि इसका नेहरू के करीबियों ने रहस्योद्घाटन किया है। नेहरू से जुड़ी सबसे चर्चित कहानी है उनकी हिंदुस्तान के अंतिम वायसराय एडविना माउंटबेटन के बीच मोहब्बत की कहानी। दोनों एक दूसरे के गहरे प्यार में थे। आजादी के बाद भी जब माउंटबेटन इंग्लैंड चलीं गईं तब भी नेहरू से मिलने साल भर में एक बार जरूर दिल्ली आतीं रहीं। उन्हें तीन मूर्ति रोड स्थित भवन में सरकारी मेहमान के तौर पर ठहराया जाता था। जहां नेहरू से उनकी मुलाकात होती थी। खास बात है कि माउंटबेटन को भी पता था कि उनकी पत्नी के रिश्ते नेहरू से हैं।
इए पंडित जी को पता नहीं है शायद की कोई बंभना जब यूरोप या अमरीका जाता है, अपनी सारी हेकड़ी भूल जाता है. ज़रूरी नहीं कि कोई रास्ते में उसे पीट दे - यह संभावना भारत में ज़्यादा है - लेकिन नज़रें बहुत कुछ कहती हैं. कुछ प्यारे दोस्त भी मिल जाते हैं, जो कहते हैं : कुछ भी हो, तुम एक इन्सान तो हो.
तभी राकेश कायस्थ जी की ये पोस्ट दिखी , लेकिन संघियों के डर से पंडितजी के रौशनदान से लटकता प्रचारक
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प्रिय प्रचारक, तुम हो राष्ट्र तारक। करते हो देश की बड़ी भलाई, लेकिन एक बात अब तक समझ नहीं आई। इतिहास के कूड़ेदान में क्यों भटक रहे हो। 53 साल हो गये नेहरू को गये, लेकिन अब भी तुम तीनमूर्ति का रौशनदान पकड़े लटक रहे हो! माना हर बेडरूम में झांकना तुम्हारा अधिकार है। लेकिन आखिर एक मरे हुए आदमी से तुम्हे क्यों इस कदर प्यार है?
53 साल में वक्त कहां से कहां पहुंच गया। कांग्रेस इस देश से गुल हो गई, तुम्हारी चड्डी हाफ से फुल हो गई। माना कि नेहरू ने कभी एडविना के लिए सिगरेट सुलगाई थी। लेकिन उस सिगरेट को बुझे तो आधी सदी से ज्यादा हो गये, तुम अब तक क्यों सुलग रहे हो? निजी रिश्तों को लेकर तुम बहुत जिज्ञासु हो। तुम्हे लेकर मेरी भी कुछ जिज्ञासाएं हैं। प्रधानमंत्री जी तो मन की बात सुनाते हैं, लेकिन तुम अपने मन की आंखों से इतना सबकुछ कैसे देख पाते हो। बिना किसी स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के एक मरे हुए आदमी की अलग-अलग मुद्राओं में इतनी तस्वीरे कैसे बनाते हो? आखिर कौन सी ऐसी कुंठा है, जो तुम्हे एक मरे हुए आदमी के रौशनदान से इस तरह लटके रहने को मजबूर करती हैं?
क्या यह गुरुजी को पंडितजी से उचित मान ना मिलने की पीड़ा है? कहीं दर्द इस बात का तो नहीं कि पूर्वज बेचारे तो कुंवारे मर गये और जिंदगी के सारे मजे वह कश्मीरी पंडित अकेले लूट गया।लेकिन वो तो गुजरी बात हो गई, उसपर कैसा शोक करना। ये मामला कुछ ऐसा है कि दादाजी को किसी कन्या ने घास ने डाली तो बदला लेने को बेताब पोते ने किसी पड़ोसी बुजुर्ग के मुंह पर कालिख मल दिया।
मुझे अंदाज़ा है कि मेरी बातें तुम्हे बहुत बुरी लग रही होंगी क्योंकि तुम्हे चरित्र निर्माण की शिक्षा मिली हुई है। लेकिन क्या तुमने कभी अपने सबसे महान नेता का चरित्र पढ़ने की जहमत उठाई है जो उनके एक और महान वरिष्ठ सहकर्मी मधोक जी लिख गये हैं। तुम्हे उन कथाओं में फोटोशॉप की अनंत संभावनाएं नज़र आएंगी। जानना चाहोगे कि पूरा देश कभी उन महान `प्रेरक प्रसंगों’ की चर्चा क्यों नहीं करता, जिस तरह तुम पंडितजी की करते हो, क्योंकि यह देश मूलत: सभ्य सुसंस्कृत और शालीन लोगो का देश है। पूछने वाले पूछ सकते थे कि तुमने अपनी चड्ढी रौशनदान में लटके-लटके बदली या थोड़ी देर के लिए नीचे भी आये थे। लेकिन क्या किसी ने ऐसा पूछा?
बुरा मत मानना भइया, निजी जिंदगियों में ताक-झांक करना तुम्हारे अपने संस्कारों का हिस्सा है। अपनी पार्टी कवर करने वाले किसी भी जानकार पत्रकार से पूछ लो पता चल जाएगा कि परिवार के कोटे से पार्टी के महासचिव बने जोशीजी की करियर डुबोने के लिए उनकी कथित सेक्स सीडी किसने बनवाई और किसने बंटवाई। उमा और गोविंद के नितांत निजी संबंधों के किस्से किसने उछाले और उन्हे असह्य मानसिक प्रताड़ना किन लोगो ने दी। नैतिकता की सारी ठेकेदारियां तुम्हारे पास हैं, लेकिन तुमने तो अपनो तक को नहीं बख्शा गैरो की क्या बात करें। व्यक्ति कितना बड़ा योगी क्यों ना हो 53 साल तक रौशनदान से लटके-लटके उसके हाथ ज़रूर दुखेंगे। की होल में आगे गड़ाये-गड़ाये गर्दन ज़रूर अकड़ गई होगी। इसलिए मेरा आग्रह है, नीचे उतर आओ भइया।
देखो देश का माहौल कितना अच्छा है। पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक हो गया। कालधन भी खत्म हो गया। हमारा विकास अब छोटा भीम बन चुका है। मिलोगे नहीं उससे एक बार? आ जाओ भइया एक बार। फिर से लटकना चाहो तो लटक जाना, रोकने वाला मैं कौन होता हूं।तुमसे इससे ज्यादा होने वाला भी नहीं है
-- अजय गंगवार (IAS, मध्यप्रदेश) की फेसबुक पोस्ट। Rajeev Mittal जी की वॉल से साभार।
जरा गलतियां बता दीजिये जो नेहरू को नहीं करनी चाहिए थीं, तो अच्छा होता। यदि उन्होंने आप को 1947 में हिन्दू तालिबानी राष्ट्र बनने से रोका तो यह उनकी गलती थी। उन्होंने IIT, ISRO, BARAC, IISB, IIM, BHEL, STEEL PLANT, DAMS, THERMAL POWER स्थापित किए, यह उनकी गलती थी।
आशाराम और रामदेव जैसे इंटेलेक्चुअल की जगह साराभाई , होमी जहांगीर को सम्म्मान और काम करने का मौका दिया, यह उनकी गलती थी। उन्होंने देश में गोशाला और मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी खोली, यह भी घोर गलती थी। उन्होंने आप को अंधविश्वासी की जगह एक वैज्ञानिक रास्ता दिखाया यह भी गलती थी। इन सब गलतियों के लिए नेहरू-गांधी परिवार को देश से माफी तो बनती है।
आशाराम और रामदेव जैसे इंटेलेक्चुअल की जगह साराभाई , होमी जहांगीर को सम्म्मान और काम करने का मौका दिया, यह उनकी गलती थी। उन्होंने देश में गोशाला और मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी खोली, यह भी घोर गलती थी। उन्होंने आप को अंधविश्वासी की जगह एक वैज्ञानिक रास्ता दिखाया यह भी गलती थी। इन सब गलतियों के लिए नेहरू-गांधी परिवार को देश से माफी तो बनती है।